शनिवार, 6 जून 2015

महाराजा सयाजीराव गायेकवाड़ : देश के सुदृण भविष्य- निर्माता

भारत में अंग्रेजों ने लगभग सौ सालों तक शासन किया। व्यापार करने आए ये विदेशी जब भारत की सम्पन्नता से अवगत हुए तो व्यापार से इनकी नीयत हट कर यहां अपने सत्ता ज़माने की होने लगी। धीरे-धीरे इन विदेशियों ने अर्थ के दम पर यहां की सत्ता हथियाने का काम शुरू कर दिया। ये बात भारतीयों को नागवार गुजरी और नतीज़न सन् 1857 की क्रांति के साथ भारतीयों ने अपने विरोध की आवाज को बुलन्द किया। सन् 1857 की क्रांति ने लगभग नब्बे वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद 1947 में आज़ादी प्राप्त की। इन नब्बे वर्षों का हर एक दिन भारतीय इतिहास में एक नए अध्याय के रूप में जुड़ा। जब भारतभूमि, जहां कई विभूतियों के जन्म की साक्षी बनी तो वहीं दूसरी ओर, इसने रक्त, बलिदान और देशभक्ति की कई घटनाओं को भी समेटा।
    
          11 मार्च , 1863 भारतीय इतिहास के उन महत्वपूर्ण दिनों में से एक है जब भारतभूमि एक ऐसी राजवाड़े खानदान में जन्मे एक ऐसे विभूति की साक्षी बनी, जिन्होंने शासन के साथ-साथ आज़ादी के लिए संघर्षरत अपने देश के सुदृण भविष्य की नींव रखी। जिनका नाम सयाजीराव- ||| गायेकवाड़ था।नासिक के मालेगाव तहसील जिले के कवलाना ग्राम में सयाजीराव का जन्म एक मराठा परिवार में हुआ। इनके पिता काशीराव गायेकवाड़ थे। सयाजीराव को 27 मई 1875 को महारानी जमनाबाई ने गोद लिया और 16 जून 1875 को सयाजीराव सिंहासनारूढ़ हुए। सयाजीराव ने सन् 1875 से 1939 तक बड़ौदा में शासन किया। ये काल बड़ौदा के उज्जवल भविष्य की ओर दौड़ता स्वर्णिम काल माना जाता है।

       सयाजीराव ने बड़ौदा को समय के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए सदृण नींव का निर्माण किया। उन्होंने बड़ौदा में बैंक की स्थापना करवाने और टैक्सटाइल व्यापार को बढ़ावा देने में अदभुत योगदान दिया। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में सयाजीराव का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने शासन काल में अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भविष्य के सबसे अनिवार्य तत्व शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर मिशाल कायम की। भारतीय इतिहास में अनिवार्य व मुफ़्त प्राथमिक शिक्षा पेश करने वाले ये पहले शासक थे। उन्होंने हर जिले व गांवों में पुस्तकालयों का निर्माण करवाया, जिससे शिक्षा का ज़्यादा से ज़्यादा प्रसार हो सके। शिक्षा के अंर्तगत उन्होंने संस्कृत के प्रचार, विचारधारा की शिक्षा, धार्मिक शिक्षा और कला क्षेत्र को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया।

        उनका मानना था कि विचारधारा की शिक्षा से जहां लोगों में तार्किक सोच का सृजन होता है वहीं दूसरी ओर कला के माध्यम से प्रभावी अभिव्यक्ति की जा सकती है। सयाजीराव ने देश के विभिन्न शिक्षा केंद्रों में अपना आर्थिक योगदान दिया। इनकी कार्य-प्रणाली और दूरगामी सोच से प्रभावित होकर इन्हें फ़रज़न्द-ए-खास-दौलत-ए-इंग्लिशिया की उपाधि दी गई। इसके साथ-साथ एशिया के बड़े विश्वविद्यालयों में शुमार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की केंद्रीय पुस्तकालय का नाम भी सयाजीराव के नाम पर रखा गया।

      यूँ तो सयाजीराव ने 6 फ़रवरी, 1939 को दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनके द्वारा अपने शासन काल के अंतर्गत किये गए कार्य उन्हें अविस्मरणीय बनाते है। सयाजीराव द्वारा बैंक ऑफ बड़ौदा की स्थापना, भारत में सर्वप्रथम स्टेट रेलवे- गायकवाड़ बड़ौदा स्टेट रेलवे की स्थापना , बड़ौदा में भव्य सयाजी बाग़ की स्थापना और शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान को सही दिशा में अपने भविष्य अग्रसरित करने वाले मील के पत्थरों का निर्माण उन्हें आज भी जीवन्त किये हुए।

स्वाती सिंह