शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

कहानी - दोस्त वाली बीवी




सूरज की पहली किरण अपने सुर्ख रंग से धुंध वाली रात के काले साये को विदा कर रही थी और हर रोज़ की तरह आज भी रिया की नींद विमला की आवाज़ से खुली। घर में आते ही उसने सर्दी से कंपकंपाती आवाज़ में कहा - भाभी, गुड मॉर्निंग! हम आ गए हैं, अरे! अब तो उठ जाइए।  

यह कह कर विमला हर्ष को स्कूल के लिए तैयार करने उसके कमरे की ओर चली गई।  

भाभी कल रात तो एकदम हाड़ कंपाने वाली ठंड थी
(हर्ष के लिए लंच बॉक्स पैक करते हुए विमला ने कहा)

हूं.....!

उसकी इस बात का इससे ज्यादा क्या जवाब देती.....कल रात मौसम कैसा था, इस बात का अहसास ही कहां हुआ। मुझे नितिन से फिर उसी बात पर झगड़ा नहीं करना चाहिए था।’ - रिया अभी अपने आप से सवाल-जवाब कर ही रही थी कि विमला ने चाय का कप रिया की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोली - भाभी क्या बात है, आज आप बहुत गुमसुम-सी हैं।

रिया ने अपने माथे की शिकन के जाल को समेटते हुए, मुस्कुरा कर कहा - अरे नहीं! आज ठंड ज्यादा है न, इसलिए सुस्ती-सी लग रही है।’ 

ओह, हां ठंड तो बहुत बढ़ गई है। आज भईया बहुत ज़ल्दी कोर्ट के निकल गए....नाश्ता भी नहीं किया..!

नितिन, कल रात रिया से हुई उस बहस से नाराज़ था शायद....! वह समझ गई थी, लेकिन फिर भी विमला के सामने उसने बात संभालते हुए कहा - हां आज उनको जल्दी जाना था।

नितिन और रिया की शादी को पांच साल बीत चुके थे। उसने नितिन को हमेशा बेहद शांत देखा था, लेकिन उसके पीछे की उदासी रिया समझती तो थी, पर आज तक उस उदासी की वजह उसे मालूम न थी। नितिन एक जिम्मेदार पति और पिता था, अपने परिवार को खुश कैसे रखना है, उसे अच्छी तरह पता था, लेकिन ये सब वह ऐसे करता जैसे वो कोई ड्यूटी पूरा कर रहा हो। नितिन ने रिया से कभी कोई मांग नहीं की सिवाय इस बात के कि वो उसकी उदासी की वजह जानने के लिए कभी जिद नहीं करेगी। उसने रिया को यह भरोसा भी दिया था कि समय आने पर वह उससे सभी बातें साझा करेगा। रिया ने भी अपनी समझदारी दिखाते हुए नितिन पर कभी कोई दबाव नहीं दिया, लेकिन कल रात जब रिया ने नितिन की वो डायरी (जिसमें वह रोज़ रात पढ़ा करता था) पढ़ने के लिए लिया, तो यह देखते ही वह गुस्से में चिल्ला उठा। रिया ने उसके इस रूप को पहले कभी नहीं देखा था। इसके बाद, दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात नहीं की। 

इस बात को करीब एक हफ्ते बीत चुके थे। आज नितिन रात होने से पहले घर आ गया था। हमेशा की तरह हर्ष ने पापा को देखते ही अपनी फरमाइशें गिनानी शुरू कर दीं और फिर दोनों बाप-बेटे शाम की सैर पर निकल गए। नितिन का मूड आज कुछ बेचैन-सा मालूम हो रहा था। रिया इस बात को समझ गई थी और वो यह भी अच्छी तरह जानती थी कि नितिन अपनी परेशानी बिना उसके कहे साझा नहीं करेगा। डिनर के बाद, रिया ने नितिन से कहा -

चलो छत पर टहलने चलते हैं।

बिना किसी ना-नुकुर किए नितिन ने तुरंत हामी भर दी, शायद आज उसके पास बहुत-सी बातें थीं, जिसे वो रिया से साझा करना चाहता था।

इस चांदनी में सर्द हवाएं जैसे छुट्टी पर चली गई थीं। हर तरफ चांदनी रात का उजाला था।

नितिन ने रिया का हाथ थामते हुए छत पर पड़ी चौकी पर बैठने को कहा।

रिया, आज मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी है। हमारी शादी को आठ साल बीत चुके हैं और मुझे मालूम है कि शुरू से लेकर आज तक तुमने मेरी उदासी को हर पल महसूस किया है, लेकिन इस बात के लिए कभी मुझ पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं दिया।- नितिन ने कहा|

मैं चाहती थी कि तुम अपनी बातें मुझसे तब शेयर करो जब तुम्हें ठीक लगे न कि तब जब मैं तुम्हें कहूं’ - रिया में नितिन को भरोसा देते हुए कहा।

लेकिन आज मैं चाहता हूं कि तुम्हें सारे सवालों के जवाब मिल जाए। मैं सालों से एक अंतर्द्वंद में जी रहा था। ऐसा लगता था कि मैं खुद इसे संभाल सकता हूं पर शायद मैं गलत था।

नितिन प्लीज़ अब बातें मत बनाओं। बताओ मुझे कि आखिर बात क्या है।

कॉलेज टाइम में मैं, दीपक भईया और रोहन साथ फ्लैट लेकर रहा करते थे। फ्लैट में दो कमरे थे। मैं और दीपक भईया एक रूम में रहते और एक रूम में रोहन। रोहन की कई गर्लफ्रेंड्स थी, जिनका रूम में आना-जाना लगा रहता। उसके सभी रिलेशन सिर्फ फिजिकल रिलेशन तक सीमित रहते थे, मुझे रोहन का आए दिन लड़कियां बदलने का रवैया मुझे पसंद नहीं था। मैं और दीपक भईया अक्सर इस पर बात करते, लेकिन फिर ये उसकी पर्सनल लाइफ है और सबसे अहम बात कि लड़कियों को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी। उनमें से सभी रोहन के बारे में जानती थीं, बस ये सब सोच कर हम दोनों इन सब बातों को इग्नोर कर देते। और उस वक्त आर्थिक तौर पर मैं घर से इतना सक्षम भी नहीं था कि अलग रूम लेकर रहता। चूंकि रोहन का घर मेरे गांव के पास था, इसलिए घरवाले भी निश्चिंत रहते थे कि उनका बेटा किसी जान-पहचान वाले के साथ रह रहा है।

एक बार गर्मियों की छुट्टी के बाद जब मैं घर से वापस बनारस आया, तो देखा कि रोहन के रूम पर लड़की थी। मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और सीधे फ्रेश होने चला गया। जब मैं नहा कर रोहन के रूम से अपनी किताबें लेने गया, तब उस लड़की को देखा, उसकी नज़र अपने टैबलेट के की-बोर्ड में टिकी थी। ऐसे लग रहा था कि वो मुझे देखना नहीं चाहती थी। खैर मेरी भी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। जैसे ही मैं किताबें लेकर रूम से बाहर निकलने लगा रोहन कमरे में घुसते हुए बोला- अरे नितिन! इससे मिलो ये नीतू है.... और नीतू ये नितिन।’ 

नीतू ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- अच्छा तो ये है नितिन..! नमस्ते, मैं नीतू।

उसका ये अंदाज़ मुझे बेहद अलग-सा लगा। एकदम अलग, अब तक रोहन की सभी गर्लफ्रेंड्स से। 

शाम के वक्त जब हम तीनों खाना खाने बैठे, तब रोहन नीतू के बारे में बताने लगा। उसने बताया कि नीतू अच्छी लड़की है। इस पर मैं और दीपक भईया एक साथ बोल उठे - तुम्हारे लिए अच्छी है?’

रोहन ने कहा - अरे नहीं, मैं उस मामले की बात नहीं कर रहा हूं। नीतू एज ए पर्सन अच्छी है। काफी पढ़ती-लिखती है। मॉस कम्युनिकेशन से मास्टर्स कर रही है और स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स में भी काफी एक्टिव है। मेरी इससे दोस्ती करीब छह महीने पहले सोशल मीडिया में हुई और पिछले हफ्ते उसके एक रिसर्च-प्रोजेक्ट के टाइम मेरी उससे पहली मुलाकात हुई। 

मैंने और दीपक भईया ने चुपचाप उसकी बातें सुनी। इसके बाद, हम दोनों रात में रोहन की बात पर चर्चा करने लगे। मुद्दा था कि नीतू के बारे में जान कर लग रहा था कि वो समझदार होगी और बाकी लड़कियों की तरह तो बिल्कुल भी नहीं होंगी, जो अभी तक रोहन की गर्लफ्रेंड रही है, क्योंकि ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि रोहन से दोस्ती होने के बाद एक हफ्ते तक भी लड़की उससे मिलने न आ गई हो। फिर नीतू रोहन के चक्कर में कैसे फंस गई...?

दीपक भईया ने कहा - क्या पता नितिन....फंस गई....फंसाई गई या फंसना चाहती हैउनकी बात मुझे सही लगी और वो भी रोहन के मैटर में क्या इतना सोचना.....! 

नीतू कभी-कभी फ्लैट पर आती वो। सोशल कामों में वह काफी एक्टिव रहती थी। आए दिन कहीं न कहीं प्रोग्राम आॅर्गनाइज करवाती, कभी खुद भी स्ट्रीट प्ले करती। फ्लैट पर उसका आना ज्यादातर इन्हीं कामों के लिए होता, कभी हम सभी को इन्वाइट करने तो, कभी साथ में लंच करने। नीतू कब हमारी अच्छी दोस्त बन गई, कुछ पता ही नहीं चला। वह रोहन से प्यार करती थी, लेकिन उसका प्यार फिजिकल रिलेशन से परे केयर, रिस्पेक्ट करने वाला था। दीपक भईया तो उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानने लगे थे। 

मैंने और दीपक भईया ने भी रोहन के व्यवहार में काफी बदलाव देखा। नीतू अक्सर रोहन के लिए गिफ्ट्स लाती और रोहन भी उसे पूरा समय देता। इस बीच मेरी भी नीतू से बात होने लगी। मैं उसे बेहद कम समय में बहुत मानने लगा था। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था। इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की से इतनी बात नहीं की थी। नीतू मेरी अच्छी दोस्त बन गई थी, वो मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती। 

नीतू का फ्लैट पर आना ऐसा लगता जैसे घर का कोई सदस्य आया हो। इससे पहले रोहन की जितनी भी गर्लफ्रेंड थी, उनके आते ही रोहन के रूम का दरवाज़ा बंद हो जाता और दरवाज़ा खुलता सिर्फ तब जब लड़की को वापस जाना होता, लेकिन नीतू के साथ कभी ऐसा नहीं हुआ। वो अपने घर की तरह फ्लैट का ख्याल रखती। खाना बनाने में अक्सर हम लोगों की मदद करती। उसके आने के बाद हम लोगों के फ्लैट की रंगत ही मानो एकदम बदल गई थी। 

नीतू एक जिंदादिल लड़की थी। उसे हमेशा किसी न किसी एक्टिविटी में एक्टिव ही देखा। ज़िंदगी जीने के अलग मायने थे उसके। लेकिन रोहन के लिए उसका एक अलग रूप होता था। उसके प्यार करने का अंदाज़ अलग था। न फोन पर घंटों बातें करना और न ज्यादा इधर-उधर घूमना। नीतू समझदार थी और उसे पता था कि किसी को हरदम एहसास दिलाने से कोई आपका अपना नहीं हो सकता। कुछ चीज़ें खुद-ब-खुद होती है। इस दरमियान मन ही मन मैं भी नीतू को पसंद करने लगा था। कब उसका रोहन को प्यार करना, उसकी केयर करना मुझे जलाने लगा, पता ही नहीं चला। लेकिन नीतू से कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। कहता भी किस मुंह से। नीतू प्यार करती थी रोहन से और वो मुझे सिर्फ अपना दोस्त मानती थी, सिर्फ दोस्त। 

धीरे-धीरे नीतू और रोहन का प्यार गहरा होता जा रहा था। रोहन ने पहली बार अपने मम्मी-पापा से किसी लड़की यानी नीतू को मिलवाया था। यह सब देख कर मुझे अज़ीब-सी जलन होने लगी थी और ये जलन दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे इस फ्लैट में नहीं रहना है। मैं दूर चला जाना चाहता था.....उस जगह से.....नीतू से। मैंने दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंटर्नशिप के लिए अप्लाई किया और कुछ दिन बाद ही उनका लेटर आ गया। मैं छह महीने ही इंटर्नशिप के लिए चला गया। इस बीच, मेरी और नीतू की बात कम होती गई। कभी-कभार मैसेज से हाल-चाल हो जाता बस।

इंटर्नशिप को करीब पांच महीने बीत चुके थे। मैं अब दूर हो चुका था.....बनारस से.....फ्लैट से.....रोहन से और नीतू से नहीं, शायद नीतू से नहीं हो पाया था। एक दिन सुबह करीब दस बजे नीतू ने कॉल किया। मैं तुरंत मोबाइल उठा कर कॉल रिसीव करने वाला ही था, लेकिन फिर रुक गया। और कॉल डिसकनेक्ट हो गई। नीतू ने दोबारा कॉल किया। दिल्ली आने के बाद नीतू की यह चौथी कॉल थी। इस बार मैंने कॉल रिसीव किया। 

नीतू-हेलो नितिन....! कैसे हो? यार, भूल गए तुम तो दिल्ली जा कर?

मैं - अरे नहीं, बस थोड़ा बिजी शिड्यूल है। जानती तो हो तुम इंटर्नशिप का लोचा।

नीतू - हां....खैर, और बताओ सब ठीक और क्या चल रहा आजकल

मैं - हाँ....सब ठीक। मुंबई की एक कंपनी में अप्लाई किया था। सलेक्शन हो गया है। 

नीतू - वाह। बधाई ढेर सारी। बताया नहीं...।

मैं - अरे एक-दो दिन पहले ही लेटर मिला। सोचा है, जॉब करते हुए बार काउंसिल का एग्जाम दूंगा फिर कोर्ट में प्रैक्टिस।

नीतू - हां ये ठीक रहेगा।

मैं - और बताओ, आज इतनी सुबह-सुबह कॉल किया। कोई खास बात?

नीतू - हां
मैं - क्या....?

नीतू - दो गुड न्यूज़ है।

मैं - यार तो ज़ल्दी बताओ..।

नीतू - पहला, मेरा प्लेसमेंट हो गया और दूसरा, अगले महीने मैं और रोहन शादी कर रहे हैं। हम दोनों के घर वाले राज़ी हो गए हैं।

(नीतू की इस बात पर मैं कैसे रियेक्ट करू। कुछ समझ नहीं आ रहा था।)

मैं - बधाई। कब है शादी...?

नीतू - 15 को, लेकिन तुम्हें एक हफ्ते पहले आना है।

मैं - ठीक है। मैं आ जाऊंगा। अब बाय, बाद में बात करते है। 

नीतू - ओके बाय।             

अगले महीने की 15 तारीख को नीतू की शादी हो गई। मैं शादी में नहीं जा पाया या शायद जाना ही नहीं चाहता था। शादी के बाद नीतू और रोहन ने फोन करके मुझे इस बात के लिए खूब उलाहने भी दिए। दिल्ली में मेरी इंटर्नशिप पूरी हो गई थी। इसके बाद मैं मुंबई अपनी ज्वाइनिंग के लिए चला गया। इस दौरान, रोहन से बात हुई तो पता चला कि दिल्ली की एक यूनिर्विसटी में वह असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया है। नीतू ने अपनी जॉब छोड़ कर फ्रीलांस राइटिंग का काम शुरू कर दिया है। 

किस्मत भी कभी-कभी अज़ीब खेल खेलती है। किसी को चाहो तो उससे मिलाने में आपका साथ दे न दे पर दूर होना चाहो, तो दिन दुनी रात चौगुनी की दूरी से फासले बढ़ाती जाती है। मेरे और नीतू के संदर्भ में भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। शादी के बाद से मेरी और नीतू की बात न के बराबर हो गई थी। रोहन से कभी-कभी बात होती तो नीतू का भी हाल-चाल मिल जाता। इस बीच, मेरे घर तुमसे शादी करने का प्रपोजल आ गया और हमारी शादी हो गई। मैं शादी से पहले तुम्हें नीतू के बारे सब बताना चाहता था पर बताता भी क्या....? कि एक लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था, लेकिन वो किसी और को प्यार करती थी और उसकी शादी हो गई।  
नीतू और रोहन की शादी हो चुकी थी। और मेरी तुम्हारे साथ, लेकिन पता नहीं मैं कभी इस बात से आश्वस्त नहीं हो पाया था कि रोहन नीतू को लेकर क्या वाकई इतना सीरियस है और क्या वो पूरी ईमानदारी के साथ नीतू से अपनी शादी निभाएगा....?

हमारी शादी में नीतू नहीं आई। रोहन ने बताया था कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है। इस पर मैंने भी कोई ज्यादा बात नहीं की, लेकिन जब हर्ष के इस दुनिया में आने की खुशखबरी देने के लिए मैंने जब रोहन को कॉल किया तब उसका नंबर नॉट-रिचेबल आ रहा था। इसके बाद, मैंने नीतू को कॉल किया तो पता चला कि वो शिमला में है। उसने मुझे बधाई दी और कहा कि अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए उसे पंद्रह दिन अंदर दिल्ली आना है तब वह मुझसे मुलाकात करेगी। 

रिया - तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं था उस वक्त जब मैंने पूछा कि रोहन-नीतू से बात हुई कि नहीं?’

नितिन - रोहन से मेरी बात हो नहीं पाई थी और नीतू से जब मेरी बात हुई तब मैं घर में होने वाले फंक्शन में व्यस्त था। इसलिए याद नहीं रहा।

रिया - अच्छा छोड़ो ये सब। फिर नीतू दिल्ली आई...?’

नितिन - हां, करीब एक हफ्ते बाद नीतू का कॉल आया तो उसने बताया कि वो दिल्ली आ चुकी है। उसने मुझे कैफै में बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अभी उसके दिल्ली आने की बात न बताउं।

कैफे में नीतू से हुई मेरी वो मुलाकात, उससे आखिरी मुलाकात होगी, इस बात का अंदाज़ मुझे नहीं था। उसने मुझे बताया कि उसने रोहन से तलाक ले लिया है। इस बात से मैं हैरान रह गया कि आखिर ऐसा क्या हुआ इन चंद सालों में कि नीतू ने रोहन से तलाक ले लिया। मेरे पूछने पर नीतू ने मुझे जो बताया उसे सुनने के बाद मेरे हाथ-पैर ठंडे हो गए।

उसने बताया कि रोहन का एक चचेरा भाई था- राजन। शादी से पहले, रोहन के साथ नीतू की मुलाकात हुई थी उससे। वो शादीशुदा था। शादी के बाद जब नीतू और रोहन दिल्ली शिफ्ट हुए तब उनके रिश्ते की सूरत एकदम से बदल गई। राजन भी दिल्ली में रहता था। एक रात वो अपनी बीवी माधवी के साथ हमारे यहां डिनर पर आया। देर रात खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने चली गई, लेकिन माधवी, रोहन और राजन बातें कर रहे थे। करीब तीन-चार घंटे बाद मेरे कमरे का दरवाजा खुला, तो उसे लगा कि शायद नितिन आया होगा। लेकिन वो राजन था। उसने मेरे साथ जोर-ज़बरदस्ती करनी शुरू कर दी, जब मैं चिल्लाने लगी तभी रोहन आया। उसने मुझसे कहा कि नीतू, राजन के लिए ही तो शादी की है मैंने तुमसे। वो दरसल माधवी अभी तक मुझे बीवी का सुख दे रही थी, लेकिन जब राजन ने तुम्हें देखा तो मुझसे कहा कि वो तुम्हें चाहता है। इसलिए मैंने तुमसे शादी की। अब तुम मेरे भाई की सेवा करो और मैं अपनी भाभी की।

इसके बाद, राजन रोज हमारे घर आने लगा। करीब पंद्रह दिन तक उसने मेरे साथ बलात्कार किया। उन लोगों ने मुझे घर में कैद कर दिया था। माधवी भी उनका बराबर साथ दे रही थी। मैं चाह कर भी अपने घर वालों से कुछ न कह सकी। क्योंकि पापा के गुजर जाने के बाद घर पर पूरी तरह से भईया-भाभी ने अपना राज जमा लिया था। वो मां को मुझे अपनी पसंद से शादी करने का आए दिन ताना मारते थे। अगर ये बात उन तक पहुंच जाती तो वो मां का जीना मुहाल कर देते। एक दिन जब रोहन कुछ दिनों के लिए बाहर गया तब मैं शिमला अपनी एक दोस्त के पास रहने आ गई जो एक सोशल वर्कर है। इसके बाद, मैंने खुद रोहन से तलाक लेने अपील कोर्ट में दायर की। उन पंद्रह दिनों ने रिश्ते, विश्वास और शादी जैसे शब्दों से मेरा विश्वास खत्म-सा हो गया। मैं अंदर से बिल्कुल टूट चुकी थी।

(यह सब बयान करते नीतू की आंखें भर आई जिसे देखते ही मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था। बार-बार मेरे मन यह बात आ रही थी कि काश! मैंने नीतू को रोहन के बारे में सब कुछ बता दिया होता। काश! मैं नीतू को सही समय पर बता पाता कि मैं उससे कितना प्यार करता हूं।)

नीतू ने कहा कि वो नहीं चाहती थी कि ये सब बात रिया को पता चले। वो परेशान हो जाएगी। 
नितिन - तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया और तुमने मुझे कुछ भी नहीं बताया...?’

नीतू - मैंने कई बार सोचा कि तुमसे बात करूं, लेकिन फिर मुझे लगा कि तुमने अभी-अभी अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की है। मैं तुम्हारे पारिवारिक जीवन में किसी भी तरह की खलल नहीं डालना चाहती थी।

नितिन - नीतू, तो वो दोस्त ही किस काम का, जो दोस्त की मुसीबत में काम न आए।’      

नीतू - नितिन ज़िंदगी की कुछ मुश्किलें अकेले खड़े रह कर उनका सामना करने के लिए होती है। अब सब खत्म हो चुका है। मैं अपनी एक दूसरी दुनिया बसाई है। जहां मैं शिमला में अपनी दोस्त के साथ बलात्कार, एसिड अटैक और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करते हैं। कभी समय मिले तो रिया और हर्ष को लेकर आना, अच्छा लगेगा।
(नीतू की बातें सुन कर मुझे अच्छा लगा। वह एक जिंदादिल लड़की है, ये उसने साबित कर दिया था)

नितिन - ज़रूर आऊंगा

इसके बाद, वह अपने होटल के लिए निकल गई और मैं घर आ गया। 

नितिन - रिया, नीतू से हुई उस मुलाकात के बाद मैं अपने आपको उसकी हालत का ज़िम्मेदार मानने लगा। इसके बाद, मैं रोज अपनी डायरी में बनारस में रहते हुए नीतू के लिए लिखी मेरी बातें पढ़ा करता और सोचता कि काश! ये बातें सिर्फ इन पन्नों तक सीमित न रहती, तो आज नीतू की ज़िन्दगी कुछ और होती। वो विश्वास कर पाती शादी और रिश्ते पर। कई बार मैंने सोचा कि तुमसे ये सारी बातें साझा करूं, लेकिन फिर हर बार यह सोच कर चुप रह जाता कि न जाने तुम क्या सोचोगी। पर आज सुबह जब सोशल मीडिया से मिली एक खबर से पता चला कि नीतू को सोशल वर्क के लिए एक बड़े पुरस्कार से दिल्ली में सम्मानित किया जाअगा, तो आज दिन भर वो बैचैनी फिर से मुझे परेशान करने लगी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं? इतने सालों बाद भी मैं उन बातों को नहीं भुला पाया। नीतू से कैफे में उस दो घंटे की मुलाकात ने मेरे जेहन में एक कड़वी छाप छोड़ दी थी, जिसे मैं चाह कर भी किसी से साझा नहीं कर पा रहा था। न तुमसे कहने की हिम्मत हुई और न नीतू से। इस बीच उसने मुझे कॉल भी किया, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किस मुंह से उससे बात करूं....!

रिया - नितिन मैं ये नहीं कह सकती कि जो हुआ उसे भूल जाओ और ये कोई साधारण बात भी नहीं कि जिसे इतनी आसानी से भुलाया जा सके, पर तुमसे ये ज़रूर कहूंगी कि रुकने से कभी कोई हल नहीं निकलता। अब तुम्हें भी आगे बढ़ना होगा, नीतू की तरह क्या तुमने कभी सोचा कि अगर नीतू उस पल हार मान जाती तो शायद वो आज हमारे बीच ऐसे न होती, लेकिन उसने उस घटना को ही अपना भाग्य नहीं माना बल्कि वो लड़ती रही....और जीत हासिल की। उस वक्त तुम उसका साथ नहीं दे पाए, वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन अगर अब भी तुम उसका साथ नहीं दोगे तो हो सकता आने वाले समय में वो तुम्हारी कॉल रिसीव न करे। इसलिए बिना समय गंवाए कल सुबह तुम उसे काल करो।

नितिन - रिया मुझे माफ कर दो। आज तुम्हारी बातों को सुन कर लग रहा है कि मैं तुम्हें समझ नहीं पाया था। अगर समझता तो ये बातें बताने में कभी देर न करता, पर आज मैं वाकई बेहद खुश हूं कि तुम्हारे रूप में मुझे एक अच्छी दोस्त मिल गई जिससे मैं बरसों से अनजान था।
रिया - नितिन जब जागो, तभी सवेरा। देखो अब सवेरा होने को है। नीचे चलते है।

(शादी के बाद, रिया और नितिन के बीच ये पहली लंबी बात थी। चांदनी रात से शुरू हुई बातों के उस सिलसिले में कब सुबह हो गई, पता ही नहीं चला। रिया हमेशा नितिन की दोस्त बनना चाहती थी। उसने हमेशा अपनी दोस्ती के लिए पहल भी की। फिर चाहे वो नितिन को बिना किसी दबाव के अपनी बात खुद कहने देने की हो या फिर नीतू की बातें जानने के बाद शक्की बीवी की तरह प्रतिक्रिया देने की बजाय उसे सच्चे दोस्त की तरह सलाह दी। क्योंकि उसने नितिन की बातें एक बीवी की तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह सुनी थी। रिया अब समझ चुकी थी कि नितिन का पहला और आखिरी प्यार नीतू थी, लेकिन अब वो नितिन की दोस्त वाली बीवी बन चुकी थी|)

अगली सुबह नितिन ने नीतू को कॉल किया, जिसके बाद पता चला कि वो तीन दिन बाद दिल्ली आने वाली है, रिया ने भी नीतू से बात की और उसे मिलने वाले अवार्ड के लिए शुभकामना देते हुए उसे अपने ही घर पर रुकने के लिए आमंत्रित किया।  

- स्वाती सिंह 
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 (18 कहानियाँ, 18 कहानीकार नामक कहानी-संग्रह (केबीएस प्रकाशन-नई दिल्ली) में प्रकाशित कहानी|)  


गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

शादी करूं या न करूँ ये मेरी मर्जी है


पति अच्छा है, कमाता है, मारता नहीं, पीता नहीं, प्यार करता है, रात को साथ सोता है, पत्नी के रिश्तेदारों का आदर करता है, पहनाता ओढ़ाता ढंग से है, घर टाइम पर लौट आता है, दोस्तों के सामने निरादर नहीं करता, तू तड़ाक नहीं करता, मेरे बनाये खाने की तारीफ़ के पुल बाँध देता है सबके सामने…..इतना सब कुछ….ओह मैं कितनी प्रिविलेज्ड हूं| यार कुछ भी कहो, किसी सक्सेसफुल इंसान के साथ शादी होने के बाद ही लाइफ रियल में सेट होती है| इसके बाद कोई टेंशन नहीं है| पर तुम अभी इन सब बातों को नहीं समझोगी| इसलिए तो कहती हूं कि तुम भी शादी कर लो!



शादी के बाद माधवी से ये मेरी पहली मुलाक़ात थी| उसकी शादी को अभी दो साल हुए थे| जब मैंने उससे पूछा कि और बताओ कैसी हो? कैसा चल रहा है सब?तो एक सांस में माधवी ने अपने पति का गुणगान करते हुए, शादी के महत्व को समझाकर मुझे भी शादी की सलाह दे डाली| उसकी ये बातें सुनकर मुझे दुःख हुआ कि उसकी इन बातों में खुद का कोई जिक्र नहीं था| उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे उसके पास अपना कुछ हो ही न बताने को|
माधवी उस समय मास्टर्स के फाइनल इयर में थी जब उसकी शादी तय हुई थी| पढ़ाई-लिखाई में अच्छी माधवी ने अपनी ज़िन्दगी के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया था| करियर के बारे में बात करने पर वो हमेशा कहा करती – ‘यार देखा जायेगा| पहले डिग्री पूरी कर लूँ और वैसे भी पापा कह रहे थे कि इसके बाद शादी कर देंगे|माधवी का यह जवाब हमेशा मुझे इस बात पर सोचने के लिए मजबूर कर देता कि पढ़ाई का फ़ैसला जब उसने खुद लिया तो पढ़ाई के आगे के भविष्य को पापा के डिसिजन पर क्यूँ छोड़ दिया है? तमाम मुद्दों पर विचार देने वाली माधवी क्या खुद के लिए कुछ भी सोचने-करने में असक्षम है?
शादी फिक्स होने के बाद वो बेहद खुश थी| उसकी जुबान पर हमेशा अपने होने वाले पति का गुणगान हुआ करता था| और वो अक्सर ये बात कहती कि मेरा तो पर्मानेंट प्लेसमेंट हो गया है| अब तुम लोग भी जल्दी से अपनी लाइफ सेट कर लो| जैसे उसके लिए शादी करना ही लाइफ सेटकरना हो|
बचपन से ही दी जाती शादीवाली घुट्टी
हमारे समाज में हमेशा से महिलाओं के संदर्भ में शादीको उनके जीवन का अहम हिस्सा बताया गया है और उनके समाजीकरण में इस बात का ख़ास ख्याल भी रखा जाता रहा है| अक्सर छोटी बच्चियां जब रोती है तो उन्हें यह कहकर चुप कराया जाता है कि अभी सारे आंसू बहा लोगी तो विदाई में आंसू कैसे आयेंगे|मजाक में कही ये बातें बच्चों के मन में एक गहरी छाप छोड़ देती है और इसकी शुरुआत लड़कियां बचपन से ही अपने गुड्डे-गुड़ियों की शादी करवाने से कर देती है| बात चाहे सजने-संवरने की हो या किसी लड़की का घरेलू कामों में निपुण होने की हो, हमेशा इन गुणों को शादी से जोड़ दिया जाता है| यह किस्सा न केवल हमारे इतिहास का रहा है, बल्कि वर्तमान समय का भी है, जहां माधवी अकेली नहीं है| उसकी जैसी तमाम लड़कियाँ है जिनके लिए आज भी बचपन में दी गई शादीवाली घुट्टी उनके लिए शादी को जीवन का अंतिम लक्ष्य बना देती है और किसी सक्सेसफुल आदमी से शादी हो जाने पर उन्हें अपने जीवन की सार्थकता नज़र आने लगती है|
यह दुखद है कि जब प्रशासनिक सेवा से लेकर राजनीति, अभिनय, लेखन, रक्षा और दुनिया के सभी क्षेत्रों में महिलाएं अपनी सफलता का परचम लहरा रही है| ऐसे दौर में कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें उच्चतर शिक्षा के मेडल और डिग्री की तो चाहत है पर उनके जीवन का लक्ष्य शादी तक ही सिमटा हुआ है क्योंकि उनके समाजीकरण में शादीके महत्व की बातों को एक घुट्टी की तरह उन्हें पिलाया जाता है और बड़ी होकर वे इसे आत्मसात कर जीने लगती है या यूँ कहें कि जीने को मजबूर कर दी जाती है|
शादी करूँ या न करूँमेरी मर्जी
मैं शादी के खिलाफ़ नहीं हूं| मैं खिलाफ़ हूं शादी को अपनी ज़िन्दगी मानने से| खुद के लिए ज़रूरी मानने से| शादी, पति और परिवार को एक ऐसी दीवार बनाकर जीने से, जिसके अंदर आपका अपना अस्तित्व धूमिल होने लगे और आपकी पहचान सिर्फ बीवी, बहु, माँ, बेटी, चाची व मामी जैसे नामों तक सीमित हो जाए| साथ ही, पूरे दिन में आपका अपना कोई समय न हो| आपके पास खुद का कुछ बताने का न हो| शादी से पहले जीवन को लेकर आपके सपने आपकी एक अधूरी ख्वाइश बनकर रह जाए| यहां हमें इस बात को समझना होगा कि शादी हमारी ज़िन्दगी का एक हिस्सा है न कि पूरी ज़िन्दगी| शादी करनी है या नहीं ये आपकी मर्जी पर निर्भर होना चाहिए|
ध्यान रहे शिक्षा व योग्यता न बने आपकी किस्सा का हिस्सा
आपने भी कभी अपनी दादी-नानी व मम्मी-मौसी को यह कहते सुना होगा कि मैं तो पढ़ाई में बहुत अच्छी थी| मेरी अच्छी जॉब भी हो गयी थी, लेकिन फिर शादी हो गयी तो मैंने सबकुछ छोड़ दिया|कहते हैं कि जब आप अपनी कद्र करते है तो दुनिया आपकी कद्र करती है| इसी तर्ज पर, खुद के सफल व्यक्तित्व निर्माण के बाद की गयी शादी में कभी भी आपकी शिक्षा व योग्यता आपके किस्सों का हिस्सा नहीं बनेगी| शादी का मतलब ये नहीं कि आप अपने करियर व रूचि का त्यागकर सिर्फ गृहस्थी तक सीमित हो जाए|
माना मुश्किल है पढ़े लिखे को समझाना पर कोशिश में कोई हर्ज़ नहीं
समय बदल रहा है| लोग बदल रहें है| उनकी सोच बदल रही है| लेकिन शादीके संदर्भ ज्यादा कुछ नहीं बदला है| पहले लड़कियों की बचपन में शादी कर दी जाती थी| उन्हें ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता था| लेकिन अब लड़कियों को पढ़ाया जाता है, फिर शादी के लिए कहा जाता है| उन्हें बचपन से सिखाया जाता है कि तुम्हें दूसरे के घर जाना है| तुम पराया धन हो| तुम्हें किसी और के लिए तैयार होना है|माधवी के संदर्भ में यह बात बेहद सटीक लगती है| क्योंकि उसने समाज में लड़की होने और उसके सार्थक जीवन के लिए शादी को एकमात्र अहम तत्व तौर पर न केवल स्वीकार कर लिया था बल्कि वह इसे जीने भी लगी थी| आधुनिकता के इस दौर में अक्सर कहा जाता है कि अनपढ़ों से ज्यादा पढ़े-लिखों को समझाना मुश्किल है पर कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है| पर उन्हें समझाने से साथ-साथ खुद को भी समझना होगा कि शादीजैसी समाजिक संस्था कभी हमारी मज़बूरी न बने|
लड़कियों, जी भरकर जियो ज़िन्दगी
बदलते समय के साथ अब शादी के मायने भी बदल रहे हैं| ये दौर अपने सपनों को उड़ान देने का है| ऐसे में शादी के नामपर खुद के सपनों को कुर्बान कर देना कहीं से भी आपको पतिव्रता नहीं बनाएगा, इस बात को अब समझना होगा| लड़कियों जमाने के लिए आप कितनी भी कुर्बान हो जाए, उँगलियाँ हमेशा आपके खिलाफ़ ही उठती रहेंगी| यह न केवल हमारा इतिहास रहा है, बल्कि यह हमारा वर्तमान भी है| इस बात को हमेशा याद रखें कि ये समाज कद्रदान हमेशा उसी शख्स का होता है जो खुद की कद्र करता है| न कि उसका जो दूसरों के लिए खुद को कुर्बान कर देता है| इसी संदेश के साथ आप पहले अपने व्यक्तित्व और सपनों की कद्र करें| और शादी को तभी स्वीकार करें जब ये आपकी मर्जी हो, न कि ज़िन्दगी के एकमात्र लक्ष्य के तौर पर (जैसा हमें बचपन से सिखाया जाता है)|

 (फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख)
https://feminisminindia.com/2017/03/27/marriage-choice-women-hindi/

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

हिंदी साहित्य को जीवंत दिशा देने में सार्थक भावना शर्मा के ‘अतुल्य रिश्ते’


बचपन से हम सभी अपनी दादी-नानी से ढ़ेरों किस्से-कहानी सुनकर बड़े हुए है| वे कहानियां ही थी, जिन्होंने हमें कभी रात में चंदा मामा से मिलवाया तो कभी परियों के देश की सैर करवायी| अगर बात की जाए कहानी के इतिहास की तो हम यह कह सकते हैं कि शब्दों के साथ कहानियों के रचने का किस्सा शुरू हुआ| जैसे-जैसे शब्द रचते गए कहानियां बनती गयी|

प्रतिस्पर्धा के दौर में कोई भी क्षेत्र प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं रहा| फिर चाहे वो साहित्य जगत ही क्यूँ न हो| दिन दोगुनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दायरे भी अब निरंतर बड़े होते जा रहे है| बात की जाए हिंदी साहित्य की तो प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा जैसे प्रसिद्ध-प्रतिष्ठित लेखकों के दौर में रचना का निर्माण उसके सामाजिक सरोकार व देशकाल के आधार पर किया जाता था| लेकिन वर्तमान समय में रचना के निर्माण का आधार सीधे तौर पर उसके बाज़ार से जुड़ा है| आज ज्यादा पढ़े जाने वाले या यों कहें कि ज्यादा बिके जाने वाले लेखक सफल माने जाते है| रचनायें अब पाठक की रूचि और बाज़ार के अनुरूप गढ़ी जाने लगी है, न कि सामाजिक सरोकारों और देशकाल के अनुरूप| शायद यही वजह है कि बेहतरीन हिंदी-साहित्य के लिए आज भी हम प्रेमचंद व जयशंकर प्रसाद के दौर को याद करते है| क्योंकि वे रचनायें हमें जिंदगी जीने का ढंग सिखाती थी, समाज से रु-ब-रु करवाती थी और जीवन के तमाम रंगों को  हमारे देशकाल के अनुरूप ढालकर प्रस्तुत की जाती थी|

आजकल हर दूसरा इंसान कहता है कि लोगों में अब वैसी एकता और मेलजोल का भाव नहीं|’, ‘दुनिया अब स्वार्थी हो चुकी है|’, ‘कोई किसी का सगा नहीं ही|’.......! वाकई वर्तमान समय में यह बातें सच होती हुई, एक बड़ी समस्या के तौर पर हमारे समाज में फ़ैल भी रही है| यदि हम इस समस्या के कारण तलाशने की कोशिश करें तो हम यह पाते है कि बात चाहे टीवी जगत की हो या साहित्य-जगत की, हर जगह पश्चिमी-संस्कृति का प्रभाव तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है, जिसमें व्यक्तिवादिता को ज्यादा महत्वपूर्ण ढंग से दर्शाया जा रहा है| पर व्यक्तिवादिता कभी-भी भारतीय संस्कृति का मूल नहीं रही है| कहते हैं कि मीडिया (जिसमें टीवी जगत और साहित्य जगत दोनों सम्मिलित है) समाज का आईना होती है और कई बार यह समाज को आईना दिखाने का भी काम करती है| इससे साफ़ है कि हम जैसा देखेंगे, जैसा पढ़ेंगे वैसा व्यवहार करेंगे| भौगोलिकरण के दौर में संस्कृति के आदान-प्रदान का ऐसा अँधा दौर चल पड़ा है जहां बिना देशकाल-वातावरण की पड़ताल किये हम सभी उस संस्कृति को आत्मसात करते जा रहे है, जो सीधे तौर पर हमारे विचार, व्यवहार और जीवनशैली को प्रभावित कर रही है

इस दौर में जब युवा रचनाकारों की पहली पसंद व्यक्ति केंद्रित कहानियां है, ऐसे में भावना शर्मा द्वारा रचित उनका पहला कहानी-संग्रह अतुल्य रिश्तेहिंदी-साहित्य में एक नई सुबह के सूरज की लालिमा के समान है, जिसके लिए लेखिका को साधुवाद  


अपनी-सी लगती है अतुल्य रिश्तेकी कहानियां

समाज की तमाम विसंगतियों, मानव-जीवन के रूप-रंगों और आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुचलते रिश्तों के मर्म को लेखिका ने अपनी कहानियों में बखूबी उकेरा है| बात की जाए, कहानियों के देशकाल और वातावरण की तो लेखिका ने घर-परिवार, आस-पड़ोस के रंग में रंगीं जीवनशैली वाले पात्रों को चुना है, जिससे उनकी रचनायें पाठक को सहज व स्वाभाविक होने के साथ-साथ अपनी-सी लगती है|


लेखन में सधी हुई पकड़

लेखिका ने कहानियों का तानाबाना बेहद सरल व प्रवाहमयी भाषा में बुना है जो कहानियों को एक जीवंत रूप प्रदान करती है| युवा रचनाकारों की रचनाओं में भाषा को लेकर अक्सर यह समस्या देखी जा सकती है कि जब वे सामाजिक परिवेश में मनोभावों को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत करने का प्रयास करते है तो ज़्यादातर उनकी भाषा क्लिष्ट होती जाती है, जिससे उनकी रचना में जीवंतता की जगह नीरसता लेने लगती है| लेकिन भावना जी ने अपनी कहानियों में सामाजिक परिवेश और मनोभावों को सरल भाषा में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है, जो कहीं-न-कहीं लेखन में उनकी सधी हुई पकड़ को दर्शाता है|


आकर्षक कहानी-शीर्षक

लेखन क्षेत्र की किसी भी रचना में उसका शीर्षक बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि शीर्षक ही पाठक को उस रचना की ओर आकर्षित करता है, जिससे वह उस रचना का पाठक बन पाता  है| कई बार सटीक शीर्षक के अभाव में अच्छी रचनाओं को भी वह सफलता नहीं मिल पाती जिसकी वे सही हकदार होती है| शीर्षक का रचना के लिए न्यायपूर्ण होना बेहद आवश्यक है| ऐसे में, 'अतुल्य रिश्ते' की लेखिका ने सभी कहानियों के शीर्षक भी सजगता के साथ ऐसे चुने है जो एकबार में न केवल पाठक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं, बल्कि उनके मन में कहानी को लेकर कौतुहल भी उत्पन्न करते हैं|



‘कावेरी की पालकी’ के दो रंग  

कहानी संग्रह में कावेरी की पालकीदूसरों के घरों में काम करने वाली एक ऐसी स्वावलंबी युवती की कहानी है जो जीवन की तमाम कठिनाइयों को पार कर अपनी बेटी को उज्ज्वल भविष्य देने के लिए अपने परिवार और दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाती है और अपने जीवन के अंत तक वो अपनी बेटी के बेहतर भविष्य के लिए प्रयासरत रहती है| वहीं दूसरी ओर, कावेरी के गुजर जाने के बाद उसके मालिक-मालिकिन उसकी बेटी के लालन-पालन का जिम्मा खुद लेते है| यह कहानी जहां एक ओर पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला और बेटी के रूप में जन्मी स्त्री की तमाम कठिनाइयों को उजागर करती है| वहीं दूसरी ओर, कहानी में मालिक-नौकर से इतर इंसानियत के रिश्ते को दर्शाया गया है, जहां कावेरी के मालिक-मालिकिन बिना किसी भेदभाव के उसकी बेटी को अपनी बेटी की तरह स्वीकार करते हैं|


उपभोगतावादी संस्कृति को बेपर्दा करती स्वार्थ की दुनिया

ऐसे ही लेखिका की एक अन्य कहानी स्वार्थ की दुनियाउपभोगतावादी चकाचौंध में फंसते एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो बाजारवाद और आधुनिकता की दौड़ में भागते हुए अपने परिवार, अपने माता-पिता को भूलता चला जाता है| वहीं दूसरी ओर, कहानी में चकाचौंध की गहरी शाम का रंग भी लेखिका ने संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है, जब स्वार्थी दुनिया उस इंसान से अपना स्वार्थ निकालने के बाद किनारा कर लेती है| लेकिन उसके परिवार वाले तब भी उसके साथ होते है| इस कहानी के ज़रिए लेखिका ने स्वार्थ और निस्वार्थ के रिश्तों के बीच के फ़र्क को सटीकता से पाठक तक पहुंचाने का प्रयास किया है, जिसमें में वह काफी हद तक सफल भी हुई है


अनकहा दर्दइस कहानी-संग्रह की मर्मस्पर्शी कहानी है| लेखिका ने कहानी के मुख्य पात्र नट्टू के ज़रिए जहां एक ओर, माता-पिता और अपनी बहन के प्रति उसके कर्तव्यपरायणता को दर्शाया है| वहीं दूसरी ओर, अपने कलेजे के टुकड़े को खो देने के बाद माता-पिता और बहन की तड़प को करीने से अभिव्यक्त किया है|

इसी क्रम में कहानी गर्भ की आवाज़और मुंबई लोकल ट्रेनजैसी सभी कहानियां समाज की कुरीतियों और जीवन के मर्म को प्रस्तुत करती है| कहानी-संग्रह की सभी कहानियां संभावनाशील कथाकार की कोपलें खोलती कहानियां है| हिंदी-साहित्य के मौजूदा दौर में ऐसी रचनायें साहित्य को नई, जीवंत और सार्थक दिशा देने के लिए बेहद आवश्यक है, जिसके लिए भावना शर्मा जैसी युवा-कथाकार का साहित्य जगत में आगमन एक शुभसंकेत भी है        


स्वाती सिंह 



बुधवार, 25 जनवरी 2017

‘बेटी की इज्ज़त और सुंदरता के मानक’ वाली पॉलिटिक्स


‘उनसे ज्यादा बहुत सी सुंदर महिलाएं है, स्टार कैपेंनर हैं| हिरोइन और आर्टिस्ट हैं जो उनसे बेहतर हैं| बीजेपी में खूबसूरत महिलाओं की कमी नहीं हैं, जहां खड़ा कर देंगे, उनसे ज्यादा वोट ला सकती हैं|’ – ये बयान हैं सांसद विनय कटियार का, जो उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में दिया|


इस बयान को सुनने के बाद ऐसा लगता है जैसे विनय कटियार कोई सांसद नहीं बल्कि मिस वर्ल्ड कम्पटीशन में सुंदरता के पैमाने जांचने वाले अफसर हो, जिन्हें सुंदरता की बेहद बारीक परख हो|  

उत्तर-भारत में चुनावी बिगुल बज चुका है| हर पार्टी अपनी-अपनी जीत की तैयारी में एड़ी-चोटी एक करने में जुटी है| चुनावी-दौर का यह एक ऐसा समय होता है जब उम्मीदवारों या यूँ कहें प्रतिभागी राजनीतिक पार्टियों को तात्कालिक मुद्दों पर और उनके सुधार को लेकर अपनी नीति पर बात करनी चाहिए| ऐसे में अनुभवी नेताओं द्वारा महिलाओं के लिए बेटी, सुंदरता व इज्जत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके इस तरह की टिप्पणी करना न केवल उनकी संकीर्ण सोच बल्कि देश में राज करने की नीति में तेज़ी से इस्तेमाल में लाये जाने वाले निम्न-स्तरीय हथकंडों को भी दर्शाता है|    

आगामी उत्तर-प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की स्टार प्रचारक है प्रियंका गांधी| जिनके खिलाफ़ अपने बयान के ज़रिए राजनीतिक दावं खेलने की कोशिश की विनय कटियार ने|  प्रियंका गांधी ने जिसका जवाब देते हुए कहा कि – ‘वे सही हैं, उनके पास ऐसी महिलाएं हैं| लेकिन क्या बीजेपी मेरे साथियों को इस नज़रिए से देखती है, जो मज़बूत हैं, बहादुर और ख़ूबसूरत महिलाएं हैं? ये महिलाएं जहां हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने तमाम मुसीबतों का सामना किया है| अगर ऐसा है तो मुझे और भी हंसी आ रही है क्योंकि उन्होंने आधी आबादी के बारे में बीजेपी की सोच को ज़ाहिर कर दिया है|



इस हफ्ते में महिलाओं पर दिया गया यह दूसरा विवादित बयान था| इससे पहले, जेडीयू के नेता शरद यादव ने पटना में कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन के मौके पर कहा कि बेटी की इज्जत जाएगी तो गांव-मोहल्लों की इज्जत जाएगी, वोट एक बार बिक गया तो देश की इज्जत और आने वाला सपना पूरा नहीं हो सकता|’ शरद यादव पहले जेडीयू के नेशनल प्रेसिडेंट रहे हैं| एनडीए के कन्वेयर रहे हैं| ऐसे अनुभवी नेताकी ओर से ऐसा दकियानूसी बयान आना हताश करता है|



कहते है प्यार और जंग में सब जायज़ है| इसी तर्ज पर अगर बात की जाए भारतीय राजनीति की तो इस जुमले की दिशा में बढ़ते राजनीतिज्ञ चुनावी मौसम में अक्सर दिखाई पड़ जाते है| पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने प्रतिद्वंदी को परास्त करने या नीचा दिखाने की फ़िराक में नेता खुद को आगे बढ़ाने की बजाए अपने को हर हद से नीचे गिराते जाते है| समय बदल गया| चुनाव के नियम और उन्हें लड़ने-जीतने की नीति बदल गयी| अब आम का नहीं ख़ास या यूँ कहें लीक से हटकर काम करने से, सुर्ख़ियों में बने रहने से अपने वोटों को बढ़ाने का चलन चलता जा रहा है| ऐसे में देश के नेता इस चलन को विपरीत दिशा में आत्मसात करते इस कदर नज़र आते हैं कि किसी भी मुद्दे व दुर्घटना पर उनके विवादित बयान सुर्खियाँ बन जाते है और मुद्दे बेहद बारीक़| आज़ादी के इतने साल बाद कई सरकारें बदली, लेकिन डिजिटल इंडिया के दौर में अपने देश का, समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले और हमारे वोटों से चुने गए जननेताओं के ऐसे बयान कई सवाल खड़े देते हैं| सवाल - हमारे समाज की सोच का, समाज के लिए उचित प्रतिनिधि चुनने की क्षमता का और हमारी शिक्षा का| 

गौरतलब है कि सुंदरता अपनी जगह एक सच्चाई है, लेकिन उसकी ओर तारीफ़ भरी निगाहों से देखना एक बात है और उसे ही स्त्री के मूल्यांकन की एकमात्र कसौटी बना लेना बिल्कुल दूसरी बात है| यह वह दौर है जब बात चाहे खेल-जगत की हो या प्रशासनिक सेवा व राजनीति की हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहीं है और लगातार सफलता के इतिहास में नए पन्ने जोड़ रही है, ऐसे में महिलाओं के अस्तित्व को इंसान की बजाय बेटी-बहु जैसे रिश्तों का नाम लेकर उनके साथ ‘इज्जत’ का पत्थर बांधते हुए उनके अस्तित्व को संबोधित करना निंदनीय है|

इस पूरे प्रकरण में यह समझना होगा कि जब बात महिला पर हो, उन्हें लेकर किसी भी तरह की संकीर्ण मानसिकता पर हो तो इसमें महिलाओं को समझदारी दिखाते हुए पितृसत्ता की सड़ी सोच रखने वाले शख्स पर निशाना साधना चाहिए न की उनकी राजनीतिक पार्टी की महिला प्रतिनिधि पर|

(फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख|)
https://feminisminindia.com/2017/01/26/vinay-katiyar-politics-hindi/