समाज और इतिहास की तलहटी में छिपे और वर्षों से हमारी आँखों से ओझल पहलुओं को सामने लाने की दिशा में एक प्रयास.......प्रतिरोध की ज़मीन....!!
मंगलवार, 25 नवंबर 2014
दस्यु सुंदरियों की राजनीतिक चुप्पी
उत्तर-प्रदेश में चम्बल नदी के किनारे बसा 'बीहड़ का जंगल'
अपने खूंखार जानवरों और खतरनाक डाकुओं के लिए जाना जाता है। सालों
से चम्बल नदी के किनारे बसे बीहड़ के इस जंगल ने ना केवल खतरनाक डाकुओं के
गिरोहों को पनाह दी, बल्कि इन गिरोहों की वहशी अत्याचारों से
मजबूरन बनती 'दस्यु सुंदरी' के इतिहास का साक्षी भी बना।
मंगलवार, 4 नवंबर 2014
विशाल भारत की सिकुड़ती 'बदहाल सड़कें'
सड़क' परिवहन का एक ऐसा माध्यम होता है जिसपर पूरी सभ्यता,संस्कृति या यूँ कहे पुरे देश के विकास का दारोमदार होता है। ये सड़कें ही तो है, जो हमें किसी नई जगह तक पहुंचती है और वहां की संस्कृति से हमें रु-ब-रु कराती हैं। सड़कों पर दौड़ते साधनों से, जहाँ एक ओर हम वहां के विकास दर का पता लगाया जा सकता है तो वहीं दूसरी तरफ, इन सड़कों के किनारे बसे बाज़ार और गाँव-घर से लोगों के जीवन-स्तर व जीवन-शैली और पूरी अर्थव्यवस्था का पता लगाया जा सकता है।अब सोचिए अगर भारत जैसे विशाल देश की चार लाख सत्तर हज़ार किलोमीटर तक फ़ैली सड़कें देश के यानी एक वर्ग किलोमीटर पर 0.66 किलोमीटर तक सिकुड़ती सड़कें कैसे देश के हर कोने को छू पाएंगी? और इसका देश के विकास और संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है।
आज़ादी के लगभग साठ सालों के बाद भी क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश सच में लोकतान्त्रिक बन पाया? ये प्रश्न अब भी लोगों के प्रश्नों से घिरा है। आज़ादी के बाद से कृषि से लेकर संचार तक,शिक्षा से लेकर सामाजिक सुधार तक बहुत कई सफल काम किए गये। लेकिन अफ़सोस,सरकार की तरफ से इन सबके मूल आधार की संरचना के विकास पर कोई ख़ास कदम नहीं उठाए गये। आज भी हमारे देश में एक जगह से दूसरी जगह तक पहुचने का सड़क ही एकमात्र साधन उपलब्ध है। इसके अलावा लोकल ट्रेन व मेट्रो जैसी सुविधाएँ कुछ शहरों तक ही सिमटी है,जो सड़क जाम की समस्या को सुलझाने में कहीं भी सफल नहीं दिखाई पड़ रही। जिसका अंदाजा दिल्ली,कलकत्ता,चेन्नई जैसे मेट्रों सिटी में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और जाम की समस्या से लगाया जा सकता है।
भारत में सिकुड़ती इन बदहाल सड़कों की समस्या के कारणों पर अध्ययन करने पर पता चलता है कि यहाँ तीन चीज़ों सबसे ज्यादा अभाव है-शिक्षा,तकनीक और इन्हें लागू करने का अप्रभावशाली तरीका। भारत में हर साल थोक के भाव युवा इनजीनियर की भर्ती सड़क निर्माण विभाग में की जाती है तो वहीं दूसरी ओर सड़क टूटने,अतिक्रमण और फ्लाईओवर टूटने की घटनाएँ भी सामने आ रही है। भारत में स्मार्ट फ़ोन इस्तेमाल करने वालों और आधुनिक वाहनों का प्रयोग तो बहुत जमकर किया जाता है,लेकिन जब बात आती है सड़क-निर्माण की तो वही बरसों पुरानी गिट्टी-अलकतरा की तकनीक ही लागू की जाती है।कमी सिर्फ यहीं तक नहीं लोगों के व्यवहार और शिक्षा व तकनीक को लागू करने में भी है।
भारत में अधिकांश लोग ऐसे है जिन्हें अपने रोटी,कपड़ा और मकान के अलावा हर चीज़ बेगानी नजर आती है,जिसका नतीज़ा ये होता है कि सड़क-परिवहन के किसी भी नियम से ये अपना कोई वास्ता नहीं रखते। नतीजन सड़क दुर्घटना की वारदातें बढ़ती जा रही है। इसलिए शिक्षा,तकनीक के साथ-साथ लोगों की सोच में परिवर्तन होने के बाद ही सिकुड़ती इन बदहाल सड़कों का विस्तार और देश का विकास संभव होगा।
स्वाती सिंह