बुधवार, 25 जनवरी 2017

‘बेटी की इज्ज़त और सुंदरता के मानक’ वाली पॉलिटिक्स


‘उनसे ज्यादा बहुत सी सुंदर महिलाएं है, स्टार कैपेंनर हैं| हिरोइन और आर्टिस्ट हैं जो उनसे बेहतर हैं| बीजेपी में खूबसूरत महिलाओं की कमी नहीं हैं, जहां खड़ा कर देंगे, उनसे ज्यादा वोट ला सकती हैं|’ – ये बयान हैं सांसद विनय कटियार का, जो उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में दिया|


इस बयान को सुनने के बाद ऐसा लगता है जैसे विनय कटियार कोई सांसद नहीं बल्कि मिस वर्ल्ड कम्पटीशन में सुंदरता के पैमाने जांचने वाले अफसर हो, जिन्हें सुंदरता की बेहद बारीक परख हो|  

उत्तर-भारत में चुनावी बिगुल बज चुका है| हर पार्टी अपनी-अपनी जीत की तैयारी में एड़ी-चोटी एक करने में जुटी है| चुनावी-दौर का यह एक ऐसा समय होता है जब उम्मीदवारों या यूँ कहें प्रतिभागी राजनीतिक पार्टियों को तात्कालिक मुद्दों पर और उनके सुधार को लेकर अपनी नीति पर बात करनी चाहिए| ऐसे में अनुभवी नेताओं द्वारा महिलाओं के लिए बेटी, सुंदरता व इज्जत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके इस तरह की टिप्पणी करना न केवल उनकी संकीर्ण सोच बल्कि देश में राज करने की नीति में तेज़ी से इस्तेमाल में लाये जाने वाले निम्न-स्तरीय हथकंडों को भी दर्शाता है|    

आगामी उत्तर-प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की स्टार प्रचारक है प्रियंका गांधी| जिनके खिलाफ़ अपने बयान के ज़रिए राजनीतिक दावं खेलने की कोशिश की विनय कटियार ने|  प्रियंका गांधी ने जिसका जवाब देते हुए कहा कि – ‘वे सही हैं, उनके पास ऐसी महिलाएं हैं| लेकिन क्या बीजेपी मेरे साथियों को इस नज़रिए से देखती है, जो मज़बूत हैं, बहादुर और ख़ूबसूरत महिलाएं हैं? ये महिलाएं जहां हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने तमाम मुसीबतों का सामना किया है| अगर ऐसा है तो मुझे और भी हंसी आ रही है क्योंकि उन्होंने आधी आबादी के बारे में बीजेपी की सोच को ज़ाहिर कर दिया है|



इस हफ्ते में महिलाओं पर दिया गया यह दूसरा विवादित बयान था| इससे पहले, जेडीयू के नेता शरद यादव ने पटना में कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन के मौके पर कहा कि बेटी की इज्जत जाएगी तो गांव-मोहल्लों की इज्जत जाएगी, वोट एक बार बिक गया तो देश की इज्जत और आने वाला सपना पूरा नहीं हो सकता|’ शरद यादव पहले जेडीयू के नेशनल प्रेसिडेंट रहे हैं| एनडीए के कन्वेयर रहे हैं| ऐसे अनुभवी नेताकी ओर से ऐसा दकियानूसी बयान आना हताश करता है|



कहते है प्यार और जंग में सब जायज़ है| इसी तर्ज पर अगर बात की जाए भारतीय राजनीति की तो इस जुमले की दिशा में बढ़ते राजनीतिज्ञ चुनावी मौसम में अक्सर दिखाई पड़ जाते है| पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने प्रतिद्वंदी को परास्त करने या नीचा दिखाने की फ़िराक में नेता खुद को आगे बढ़ाने की बजाए अपने को हर हद से नीचे गिराते जाते है| समय बदल गया| चुनाव के नियम और उन्हें लड़ने-जीतने की नीति बदल गयी| अब आम का नहीं ख़ास या यूँ कहें लीक से हटकर काम करने से, सुर्ख़ियों में बने रहने से अपने वोटों को बढ़ाने का चलन चलता जा रहा है| ऐसे में देश के नेता इस चलन को विपरीत दिशा में आत्मसात करते इस कदर नज़र आते हैं कि किसी भी मुद्दे व दुर्घटना पर उनके विवादित बयान सुर्खियाँ बन जाते है और मुद्दे बेहद बारीक़| आज़ादी के इतने साल बाद कई सरकारें बदली, लेकिन डिजिटल इंडिया के दौर में अपने देश का, समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले और हमारे वोटों से चुने गए जननेताओं के ऐसे बयान कई सवाल खड़े देते हैं| सवाल - हमारे समाज की सोच का, समाज के लिए उचित प्रतिनिधि चुनने की क्षमता का और हमारी शिक्षा का| 

गौरतलब है कि सुंदरता अपनी जगह एक सच्चाई है, लेकिन उसकी ओर तारीफ़ भरी निगाहों से देखना एक बात है और उसे ही स्त्री के मूल्यांकन की एकमात्र कसौटी बना लेना बिल्कुल दूसरी बात है| यह वह दौर है जब बात चाहे खेल-जगत की हो या प्रशासनिक सेवा व राजनीति की हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहीं है और लगातार सफलता के इतिहास में नए पन्ने जोड़ रही है, ऐसे में महिलाओं के अस्तित्व को इंसान की बजाय बेटी-बहु जैसे रिश्तों का नाम लेकर उनके साथ ‘इज्जत’ का पत्थर बांधते हुए उनके अस्तित्व को संबोधित करना निंदनीय है|

इस पूरे प्रकरण में यह समझना होगा कि जब बात महिला पर हो, उन्हें लेकर किसी भी तरह की संकीर्ण मानसिकता पर हो तो इसमें महिलाओं को समझदारी दिखाते हुए पितृसत्ता की सड़ी सोच रखने वाले शख्स पर निशाना साधना चाहिए न की उनकी राजनीतिक पार्टी की महिला प्रतिनिधि पर|

(फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख|)
https://feminisminindia.com/2017/01/26/vinay-katiyar-politics-hindi/

रविवार, 22 जनवरी 2017

बेशकीमती अमृता शेरगिल

सच्चे कलाकार की ये ख़ासियत होती है कि या तो वह समय से बहुत आगे चलता है या समय से बहुत पीछे| शायद यही वजह है कि सच्चा कलाकार अपनी इसी ख़ासियत से ख़ास कलाकार बन जाता है| बीसवीं सदी में एक ऐसा दौर था जब दुनियाभर के कलाकारों में लीक से हटकर काम करने का चलन तेज़ी से बढ़ने लगा था और इस दौर के इसी चलन ने दुनिया को ऐसे कलाकर दिये जिन्होंने इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी| 

इन्हीं कलाकारों में से एक है - प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार अमृता शेरगिल उर्फ़ फ्रीदा कहलो| अमृता बंगाल कला पुनर्जागरण की दक्ष कलाकार के रूप में कला जगत में प्रतिष्ठित हैं| वह भारत की सबसे महंगी चित्रकार मानी जाती थी| अपने मात्र 28 साल के जीवनकाल में अमृता ने इतिहास में एक ऐसा रंग डाला जिनसे बने इंद्रधनुष आज भी हमें अचंभित करते है|अमृता शेरगिल अपनी वास्तविक ज़िन्दगी में और अपने आर्ट में भी समकालीन कलाकरों से बहुत आगे थी| वह परफेक्शनिस्ट नहीं थी, शायद इसीलिए उनकी सोच का दायरा असीमित था|
 
                                     P.C. Googel


शिमला में गुज़रे अमृता के तीन साल 


अमृता शेरगिल का जन्म 1913 में बुडापेस्ट, हंगरी में हुआ था| उनके पिता उमराव सिंह शेरगिल मजीठिया संस्कृत और पारसी के विद्वान व कुलीन व्यक्ति थे| उनकी माता मेरी अन्तोनेट्टे गोट्समान हंगरी की एक यहूदी ओपेरा गायिका थी| उनकी एक छोटी बहन भी थी जिसका नाम इंद्रा सुन्दरम था| अमृता शेरगिल ने अपना बचपन बुडापेस्ट में व्यतीत किया| 1921 में उनका परिवार शिमला के समीप समरहिल में रहने भारत आ गया| उन्होंने वहां पियानो और वायलिन सीखना शुरू किया| नौ साल की उम्र में वह अपनी बहन के साथ शिमला स्थित माल रोड पर गेटे थियेटर में अपना कार्यक्रम और नाटकों में अभिनय करने लगी थी| मात्र पांच साल की उम्र से ही उन्होंने चित्रकारी करना शुरू कर दिया था और आठ साल की उम्र से उन्होंने चित्रकारी का बकायदा प्रशिक्षण भी लेना शुरू कर दिया था| 1923 में अमृता इटली के मूर्तिकार के सम्पर्क में आई जो उस समय शिमला में ही थे| 1924 में वह उनके साथ इटली लौट गईं|


बाईस साल से भी कम उम्र में तकनीकी चित्रकार बन गई थी अमृता


1934 में यूरोप में रहते हुए भारत आने की तीव्र इच्छा ने उन्हें भारत वापस लौटाया| उन्होंने यह अनुभव किया कि भारतीय चित्रकार बनना ही उनकी नियति है| भारतीय कला परम्परा में नई खोज उन्होंने आरंभ की जो उनकी मृत्यु तक ज़ारी रही| 1936 में वह कर्ल खंडेवाल ने उन्हें अपनी अदम्य आकांक्षा से भारतीय मूल की खोज अभियान को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया| वह मुगल, पहाड़ी चित्रकला से और अजंता-एलोरा गुफा की कलाओं से भी बेहद प्रभावित थी| बाईस साल से भी कम उम्र में वह तकनीकी तौर पर चित्रकार बन चुकी थी और असामान्य प्रतिभाशाली कलाकार के लिए आवश्यक सारे गुण उनमें आ चुके थे। पूरी तरह भारतीय न होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उनकी प्रारंभिक कलाकृतियों में पेरिस के कुछ कलाकारों का पाश्चात्य प्रभाव साफ झलकता है। जल्दी ही वे भारत लौटीं और अपनी मृत्यु तक भारतीय कला परंपरा की पुन: खोज में जुटी रहीं। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई पर अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई। उनमें छिपी भारतीयता का जीवंत रंग हैं उनके चित्र।

अमृता शेरगिल की चित्रकारी का दूसरा दौर


1938 में अमृता शेरगिल ने अपने हंगरी के चचेरे भाई डॉक्टर विक्टर इगान से विवाह कर लिया| बाद में वह अपने पति के साथ भारत आ गई और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सरया स्थान पर अपने पति के पैतृक निवास में रहने लगीं| वहां उनकी चित्रकारी का दूसरा दौर शुरू हुआ जो मॉडर्न आर्ट पर उसी तरह प्रभावकारी था जैसा बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के रवीन्द्रनाथ टैगोर और जैमिनी रॉय का ‘आर्टिस्ट मूवमेंट’ कलकत्ता ग्रुप व ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप’ पर था| कलकत्ता समूह, जो 1943 में एक बड़े रूप में रूपांतरित होकर आरम्भ होना था और प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट समूह जिसके संस्थापक फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा, ऊराब्रेक गेड, एम-एफ| हुसैन, एस|एच रज़ा थे| उन्होंने मुम्बई में 1948 में इसे परवान चढ़ाया|

पहली बार अमृता शेरगिल के कैनवास में उतरी आम भारतीय महिलाएं


बीसवीं सदी की शुरुआत में भी महिलाओं का अस्तित्व घर की चारहदीवारी तक सीमित था| क्रांतिकारी बदलाव के उस दौर से नदारद भारत की पेशेवर औरतें या तो मजदूर होती या फिर घरेलू नौकर हुआ करती थी| ऐसे में अमृता का अपने काम के लिए किसी भी यूरोपीय देश की तुलना में भारत को महत्व देना उनकी ऊंची एवं अलग सोच को दिखाता है| उस समय पश्चिमी तौर-तरीकों में पली-बढ़ी किसी भी महिला का अपने कार्यक्षेत्र के लिए यह निर्णय किसी आम औरत के लिए संभव नहीं था| अमृता ने अपने कैनवास में अजंता की गुफाएं, दक्षिण भारत की संस्कृति, बनारस को कैनवास पर उतारते-उतारते अनजाने में एक नए युग की शुरुआत कर दी| इसके साथ ही, अमृता ने अपने कैनवास में भारतीय आम-जनजीवन को भी रंगों से जीवंत किया| वहीं पहली बार, रसोई के चूल्हे और घर की चारहदीवारी में कैद भारतीय महिलाओं को वह अपने कैनवास पर लेकर आईं|   

अमृता के कैनवास की वो स्वतंत्र भारतीय महिलाएं
अमृता कलाकार थीं तो संवेदनशील उन्हें होना ही था| लेकिन हर जज्बे में उतनी ही प्रवीणता विरले ही देखने को मिलती है| जितनी खूबसूरत उतनी ही दृढ़, जितनी भावुक उतनी ही व्यवहारिक, जितनी प्रेमल उतनी ही उदासीन, ऐसा स्न्यूजं दुबारा नहीं बना| भारतीय महिलाओं को रचते हुए अमृता कितनी मुखर हो जाती थी इस बात को उनके बनाये चित्रों को देखकर महसूस किया जा सकता है| उन्होंने स्त्री को ऐसा भी रचा जैसे वो उस समय थी और वैसा भी जैसा अमृता खुद उन्हें देखना चाहती थी – ‘स्वतंत्र’| क्लासिकल इंडियन आर्ट को मॉडर्न इंडियन आर्ट की दिशा देने का श्रेय अमृता शेरगिल को ही जाता है|
तुम्हारी अमृता
अमृता शेरगिल को 1976-79 में आर्कियोलोज़िक्ल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने नौ दक्ष कलाकरों में रखा और उनकी कृतियों को आर्ट ट्रेज़र के रूप में घोषित किया गया| इनमें से अधिकतर कृतियाँ नई दिल्ली के नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट में रखी गई हैं| अमृता के एक चित्र हिल वुमेन पर 1978 में डाक टिकट ज़ारी किया गया| साथ ही ल्युटियेन्स रोड का नाम ‘अमृता शेरगिल मार्ग’ रख दिया गया| 1993 में अमृता, जावेद सिद्धकी के एक उर्दू नाटक की प्रेरणाश्रोत बनीं| ‘तुम्हारी अमृता’ नामक इस नाटक में शबाना आज़मी और फ़ारुख शेख ने काम किया था|
बेशकीमती अमृता शेरगिल
1941 में लाहौर में अपना एक बड़ा प्रदर्शन करने से पहले वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई और कोमा में चली| बाद में 5 दिसंबर 1941 को मध्यरात्रि में उनका देहांत हो गया| अमृता अपने पीछे एक बड़ा कार्य छोड़ गई| उनकी मृत्यु उनके समकालीन चित्रकारों के लिए रहस्यमय ही बनी रही| उन्होंने रंगों से भरे अपने छोटे से जीवन में कला जगत वो दे दिया जिसके आधार पूरब और पश्चिम की कला सालों-साल परखी जा सकती है| इसलिए जो अमृता शेरगिल अपने समय में बे-मोल थीं, अब बेशकीमती हैं|

(फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख|)
 https://feminisminindia.com/2017/01/30/amrita-sher-gil-hindi/