मैं अबॉर्शन नहीं चाहती थी, लेकिन मैं बच्चे को एक बेहतर जीवन देने की स्थिति में नहीं थी।
सत्रह जून, 2015- यह तारीख दर्ज हैं मेरे जेहन में। इस दिन को मैंने खुद को सशक्त रूप में
देखा था। यह वही दिन था, जब मैंने अपना गर्भपात करवाया था।
इस फैसले ने मुझे मेरे अस्तित्व से रू-ब-रू कराया था, जब
मैंने बिना किसी भावना से परे तर्कों के आधार पर समाज में महिलाओं के महिमंडित
स्वरूप के विपरीत अपने जीवन, शरीर और उस भ्रूण के भविष्य के
लिए एक निर्णय किया।
वेद और मैं दो साल से रिलेशनशिप में थे।
दोनों का करियर उन दिनों भविष्य की सुनहरी मैपिंग पर चलने को तैयार करने था। हम
दोनों में बेहद प्यार था या यूं कहें कि ये मेरा एक भ्रम था। बस इसका अहसास मुझे
देर से हुआ। एक साल की इंटर्नशिप के लिए जब मैं बंगलुरु गई, तो पीरियड मिस होने पर मैंने प्रेग्नेंसी
टेस्ट किया और मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं।
मैंने तुरंत वेद को कॉल किया :
‘वेद मेरे पीरियड्स मिस हो गए इस मंथ।’
‘ओह! तो तुमने टेस्ट नहीं किया?’
‘हां किया था, इट वाज
पॉजिटिव।’
‘ओह! शिट यार, अच्छा
तुम टेंशन न लो। मैं मेडिसिन का इंतजाम करवाता हूं।’
‘मेडिसिन किसलिए?
अबॉर्शन के लिए और किसलिए? देखो,अब तुम लड़की
वाला नाटक शुरू मत करो।’
‘मैंने तो कुछ कहा ही नहीं?’
‘तो करना क्या है तुम्हें?’
‘तुम टेंशन न लो अब, मैं
मैनेज कर लूंगी।’
‘पक्का?’
‘हां।’
‘ओके बाय, बाद में बात
करते हैं।’
‘बाय।’
दो मिनट से भी कम की इस बातचीत के बाद दिल की
हलचलों की जगह दिमाग ने ले ली। और शुरू हो गया, खुद से तर्कों पर चर्चा। मैं अबॉर्शन नहीं चाहती थी, लेकिन मैं बच्चे को एक बेहतर जीवन देने की स्थिति में नहीं थी। वेद के
अचानक बदले व्यवहार ने मुझे ‘हम’ की
बजाय ‘मैं’ पर जोर देने के लिए मजबूर
किया। वेद से मेरा रिश्ता कहीं-न-कहीं गलत साबित होने लगा था, पर अब मैं एक गलत फैसले से उपजे भ्रूण को गलत भविष्य नहीं देता चाहती थी।
और मैंने फैसला कर लिया। यह इतना आसान नहीं था और इस पर अमल करना और भी मुश्किल
था।
मैंने अपनी सबसे अच्छी दोस्त से अपनी मन की
बातें साझा कीं और उसने भी मेरे फैसले का समर्थन करते हुए मेरी मदद की। डॉक्टर ने
पहले मेडिसिन से टर्मिनेशन की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्यवश यह सफल न हो सका। नतीजतन मुझे मेडिकल
प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। रक्त और मांस के टुकड़े मेरे शरीर से निकलते रहे। इस पूरी
प्रक्रिया ने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से बेहद कमजोर कर दिया था। वेद के बदले
व्यवहार (पीछा छुड़ाने जैसा कुछ) को देख कर भावनाओं के उस जाल से निकलने में मैं थक
गई थी।
इस दौरान वेद ने एक बार भी मुझसे बात नहीं
की। शुरुआत में मुझे इस बात ने बेहद परेशान किया, लेकिन जीवन के उस अहम फैसले में जब ‘हम’
की जरूरत हो, तो ‘मैं’
का होना खुद को सशक्त होने का अहसास कराने लगता है और यही अहसास
मेरे साथ चलने लगा था। इस पूरी प्रक्रिया के बाद, बिना कुछ
कहे-सुने मेरा और वेद का ब्रेकअप को गया। अबॉर्शन को दो साल बीतने को हैं और मुझे
अपने इस फैसले के लिए एक पल के लिए भी पछतावा नहीं हुआ। क्योंकि एक असुरक्षित
रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता।
भ्रूण की उपज के लिए केवल नारी जिम्मेदार
नहीं। पुरुष भी उतना ही भागीदार होता है। जब वही किनारा करने लगे तो जाहिर है कि
वह मातृत्व का तो अपमान कर ही रहा है, उसे आने वाले बच्चे की भी उसे कोई चिंता नहीं। समाज ने
महिलाओं को हमेशा एक इंसान समझने से पहले उसके ‘जननी’
होने के रूप में स्वीकार किया है। ऐसे में अपने महिमामंडित स्वरूप
से हट कर जब महिला अपने इंसान होने के अस्त्तित्व को स्वीकार करती है, तो यह बात समाज की आंखों में चुभने लगती है। यही
वजह है कि आधुनिकता के दौर में जब महिलाएं, पुरुषों के साथ
कदम से कदम मिला कर चल रही हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना स्वीकार कर रही हैं।
अपनी पसंद से शादी करने को समर्थन देती हैं लेकिन गर्भधारण करने या न करने के सवाल पर उनकी आवाज सन्नाटे
में गुम हो जाती है।
‘ना’ कहने या उस पर अमल
करने के लिए उन्हें एक पर्दे की आड़ लेनी पड़ती है। क्योंकि मां बनना औरत की
जिम्मेदारी है। समाज की यही सोच है। बच्चा पैदा करना औरतों का फर्ज माना गया है
मगर फीटस को मार देना या बच्चा पैदा ही न करना उसका सबसे बड़ा गुनाह हो जाता है।
हाल ही में पोप फ्रांसिस ने कहा है- मैं एक
बार फिर से जोर देकर कहूंगा कि अबॉर्शन एक पाप है, लेकिन दुनिया में ऐसा कोई पाप नहीं है, जिसकी
माफी मांगी जाए और धर्म उसे माफ न कर सके। इयर ऑफ़ मर्सी पर भी यही बात कही जाती
है। इयर ऑफ़ मर्सी के बाद ईसाई धर्म में हर 25 साल पर इयर ऑफ़
जुबली मनाया जाता है। इस बार यह दिसंबर 2015 से लेकर नवंबर 2016
तक मनाया गया।
इयर ऑफ़ मर्सी मनाने का मतलब यह था कि हर
गुनहगार को माफ किया जाए। क्योंकि जीसस भी यही कहते थे कि माफ कर देने में ही आपका
बड़प्पन है। इसी तर्ज पर उन औरतों को भी आसानी से माफी की सुविधा दे दी गई, जो अबॉर्शन करवाती है।
भारत में गर्भपात को 1971 में वैध करार दे दिया गया था। मगर
सामाजिक तौर पर हर धर्म में इसको लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं।
ज्यादातर धर्मों में यह पाप है। हम माफी तो
गलतियों की मांगते है। मगर कोई भरोसा तोड़ कर स्त्री को गर्भवती बना दे या वह किसी
वहशी दरिंदे की शिकार हो जाए, तब भी क्या उसे दूसरे के किए सजा भुगतनी होगी? देश
के कानून के मुताबिक कोई भी महिला अगर गर्भपात कराना चाहती है, तो यह उसका अधिकार है। इसके लिए उसका पति या ब्वॉयफ्रेंड भी नहीं रोक
सकता। उनसे रजामंदी लेने की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ उसकी अपनी सहमति ही काफी है।
हालांकि स्त्रियों के गर्भ को धर्म के अधीन मानते की चेष्टा, उनके जननी स्वरूप को सर्वोपरि मानने का ही समर्थन है। मगर वास्तव में यह
किस्सा हर मर्दवादी धर्म का है, भले ही उनके नाम अलग-अलग हो।
(फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख|)
https://feminisminindia.com/2017/01/09/safe-abortion-hindi/
(फेमिनिज्म इन इंडिया में प्रकाशित लेख|)
https://feminisminindia.com/2017/01/09/safe-abortion-hindi/