सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

नेता जी की मौत का गहराता रहस्य या खुलते रहस्य के नए पन्ने?

देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले सुभाषचंद्र के अस्तित्व और उपलब्धियों को उनकी मौत की उलझती गुत्थी ने मानो घूमिल-सा कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से की गयी नई पहल ने इस धुंध के जल्द छटने के आसार तो दिखा दिए। लेकिन ये इंतज़ार अभी और कितना लम्बा है ये कह पाना मुश्किल है।

 शहर के संभ्रात परिवार होने के बावजूद भी उनका झुकाव पैसे और शोहरत पाने की तरफ बिल्कुल भी नहीं था। उनके दोस्त उन्हें संयासी कहकर चिढ़ाया करते थे। उनके घर वालों ने उन्हें पढ़ाई के लिए विलायत भेज दिया। जिससे वे आई.सी.एस. की उच्च परीक्षा पास करके बड़ी सरकारी नौकरी करें और अपने परिवार का रुतबा बढ़ाये। उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा पास करके भी सरकारी नौकरी छोड़ दी।क्योंकि उन्हें विदेशी हुकूमत में कलेक्टर और कमिश्नर बनने की बजाय अपनी मातृभूमि का सेवक बनना मंजूर था। ये कहानी है एक ऐसे फ्रीडम फाइटर सुभाषचन्द्र बोस की, जिन्होंने अपना सर्वस्व हमारी भारतभूमि के नाम न्यौछावर कर दिया।सुभाषचन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष है जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान की मदद से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया। उन्होंने जब जय हिन्द का नारा दिया तो ये भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। दुर्भाग्यवश इस आज़ाद भारत को अस्तित्व में लाने वालों में से एक महान व्यक्तित्व की मौत एक ऐसी गुत्थी बनकर रह गयी जो आज भी विवाद का विषय बनी हुई है। जापान में हर साल 14 अगस्त को सुभाषचन्द्र का जन्मदिवस धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं भारत में उनके परिवार के लोग ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि सुभाषचन्द्र की मौत 1945 में हुई।

23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे और 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट और कुछ लोग मारे गए। नेताजी गंभीर रूप से जल गए थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल में ले जाया गया। जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियां सञ्चित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयी। भारतीय अभिलेखागार से मिले दस्तावेज के अनुसार नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 में हो गयी थी। आज़ादी के बाद भारत सरकार ने इस घटना की जांच करने के लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गए। लेकिन ताइवान देश की सरकार से इस मसले पर दोनों आयोगों ने एक बार भी बात नहीं की।1955 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुख़र्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान में कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।

हाल ही में, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुभाषचन्द्र बोस की 100 सीक्रेट फ़ाइल की डिजिटल कॉपी जनता के सामने रखी। ये फाइलें नेताजी की मौत से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है। इन फाइलों को एनएआई (नेशनल अर्चिव्स ऑफ़ इंडिया) में नेता जी के परिवारवालों और केंद्र मंत्री महेश शर्मा और बाबुल सुप्रियो के सामने डिस्प्ले किया गया। पिछले साल अक्टूबर में, प्रधानमन्त्री ने नेताजी के परिवारवालों को ये आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार 70 साल पहले गायब हुए सुभाषचन्द्र के रहस्य की गुत्थी सुलझाएगी। प्रधानमन्त्री ने ये आशंका जताते हुए पीटीआई को बताया कि हमें आशंका है कि सुभाषचन्द्र की मौत के रहस्य के जुड़े कई दस्तावेज़ तत्कालीन कॉंग्रेस सरकार में छिपाये गए।

आज़ादी के इतने सालों बाद भी नेताजी की मौत का रहस्य आज भी उतना ही गहरा दिखाई पड़ रहा है, जितना करीब सत्तर साल पहले था। लेकिन देश में प्रधानमन्त्री की ओर से इस दिशा में की गयी इस पहल ने जनता में एक बार फिर विश्वास की अलख जला दी है। अब देखना ये है कि हमें अभी और कितना इंतज़ार करना बाकी है।

स्वाती सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें