नारीवाद के बारे में सभी ने सुना होगा। मगर यह है क्या? इसके दर्शन और सिद्धांत के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। इसे पूरी तरह जाने और समझे बिना नारीवाद पर कोई भी बहस या विमर्श बेमानी है। नव उदारवाद के बाद भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आए बदलाव के बाद इन सिद्धांतों को जानना अब और भी जरूरी हो गया है।
दरअसल, नारीवाद एक ऐसा दर्शन है, जिसका उद्देश्य है- समाज में महिलाओं की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उनकी बेहतरी के लिए वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना। नारीवाद ही बता सकता है कि किस समाज में नारी-सशक्तीकरण के लिए कौन-कौन सी रणनीति अपनाई जानी चाहिए। महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं, इसके बावजूद उन्हें अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। नारीवाद ऐसी तमाम परिस्थितियों के विषय में बताता है।
किसी
भी विचारधारा के अपने कुछ सिद्धांत होते हैं, जिनकी मदद से हम उस
विचारधारा को अच्छी तरह समझ सकते हैं। अब हम जिक्र करेंगे नारीवाद से जुड़े कुछ
प्रचलित सिद्धांतों का, जिन्हें कई बार नारीवाद का प्रकार भी
माना जाता है।
उदारवादी नारीवाद -

इसके
बाद,
इटली की क्रिस्टीन डी पिजान ने पहली बार लिंगों के आपसी संबंधों के
बारे में लिखा और जेरेमी बैंथम ने अपनी किताब ‘Introduction
to the Principles of Morals and Legislation’ में
स्त्रियों को उनकी कमजोर बुद्धि का बहाना बना कर अधिकारों से वंचित करने की कई
राष्ट्रों की मंशा की आलोचना की। इस धारा में मेरी वोलस्टोनक्राफ्ट, हैरियट
टेलर, जान स्टुवर्ट मिल, बैट्टी
फ्राइडन ग्लोरिया स्टेनम व रेबिका वाकर जैसे नाम शामिल हैं।
समाजवादी/मार्क्सवादी नारीवाद
समाजवादी
नारीवादियों ने न केवल महिलाओं की गुलामी के उदय के - एंगेल्स के विश्लेषण को
अपनाया,
बल्कि मार्क्सवादी धारणाओं को लागू कर महिलाओं के शोषण चक्र को भी
समझने का प्रयास किया। ये नारीवादी, महिलाओं के उन मौजूदा
विश्वासों और प्रवृत्तियों का महिमंडन नहीं करते, जिन पर
पितृसत्ता विचारधारा का वर्चस्व होता है और जो महत्त्वपूर्ण तरीके से रोजमर्रा के
जीवन के पितृसत्तात्मक ढांचे से प्रभावित होते हैं।

समाजवादी
नारीवादियों की समाज के बारे में सोच केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है। इनका
मानना है कि उत्पादन-प्रक्रिया में प्रजनन-कर्म (जो घर में नारी द्वारा किया जाता
है) आता है। लिंग के आधार पर विभाजित श्रम एक तरह से नारी पर थोपा जाता है। इसी
प्रकार पितृसत्तात्मक समाज में नारी के यौन संबंधी कार्य भी पुरुषों की मर्जी के
अनुसार निर्धारित होते रहे हैं। ये मानते हैं कि स्वतंत्र प्रजनन व यौन कर्म के
लिए शोषण को खत्म करना जरूरी है, यह तभी हो सकता है जब पूंजीवादी व्यवस्था
व पितृसत्ता का अंत हो।
समाजवादी
नारीवाद की रणनीति की व्याख्या ‘शिकागो वीमेंस लिबरेशन यूनियन’ के चैप्टर (1972) में की गई। इसके अनुसार समाजवादी
नारीवादी मानते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीवादी वर्ग का वर्चस्व व दमन संस्थाओं
के माध्यम से व्यवस्थित तरीके से सुनिश्चित किया जाता है।
रेडिकल नारीवाद

यह
वर्तमान सामाजिक-प्रणाली के समूची उत्पीड़न को रेखांकित करता है, जिसमें
किसी औरत के मूल्यांकन का तरीका उसकी उर्वरता के अलावा पुरुषों के लिए उसका यौन
आकर्षण ही होती है। आधुनिक रेडिकल नारीवादी सिद्धांत
के उदय में कुछ पुस्तकों ने अहम भूमिका अदा की, जिनमें पहली
किताब सिमोन द बोऊवार की ‘द सेकेंड सेक्स’ थी। इसके साथ ही, शूलामिथ फायरस्टोन की किताब द
डायलेटिक्स ऑफ़ सेक्स में भी रेडिकल नारीवाद की अवधारणा का विवरण दिया गया है।
पर्यावरणीय नारीवाद
पर्यावरणीय
नारीवाद रेडिकल नारीवाद का विस्तृत स्वरूप है। इनके अनुसार स्त्री की अधीनता, पितृसत्ता
के जरिए लैंगिक शोषण है और इसी प्रवृत्ति ने पुरुष और स्त्री के बीच स्वाभाविक
जैविक भिन्नताओं पर जोर दिया है। यह धारा जोर देती है कि स्त्रियों में कुछ गुण
निहित हैं, जैसे- प्रकृति से निकटता, पालन-पोषण
करने के गुण, जनवादी और इकठ्ठे रहने की भावना व शांति बनाए
रखना। इस प्रकृति के अनुसार हिंसा और दूसरों पर हावी होना पुरुषों में निहित गुण
हैं। नारीवाद ने पृथ्वी पर पितृसत्तात्मक
प्रक्रिया के वर्णन द्वारा पर्यावरण के बारे में एक राजनीतिक समझ पैदा की है।
अश्वेत नारीवाद
अश्वेत
नारीवाद का केंद्रीय तर्क है कि वर्गीय, नस्लीय और लैंगिक शोषण
एक-दूसरे से संबंधित है। सालों से नारीवाद की प्रचलित धाराओं ने लैंगिक-शोषण पर
बात करते हुए नस्लीय वर्गीय-शोषण को लगातार नजरअंदाज किया हैं। इसके बाद, साल 1974 में कॉमबाही रिवर कलेक्टिव ने यह तर्क
प्रस्तुत किया कि अश्वेत स्त्री की मुक्ति के बाद ही पूरे मानव-समाज की मुक्ति
संभव है। अश्वेत आंदोलन की आधारभूमि को तैयार करने में एलिस वॉकर केवुमेनिस्म के
सिद्धांत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

पेट्रिशिय
हिल कॉलिन्सने ने अपनी महत्त्वपूर्ण कृति ‘फेमिनिस्ट थॉट’ में अश्वेत नारीवाद को परिभाषित करते हुए कहा कि ‘इस
नारीवाद को सैद्धांतिकी देती हुई विदुषियों ने साधारण अश्वेत स्त्री के अनुभवों और
उसके विचारों को शामिल करते हुए एक अलग किस्म को दृष्टि अपने समुदाय और समाज के
प्रति प्रदान की।’
स्वाती सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें