सूरज की पहली किरण अपने सुर्ख रंग से धुंध वाली रात के काले
साये को विदा कर रही थी और हर रोज़ की तरह आज भी रिया की नींद विमला की आवाज़ से
खुली। घर में आते ही उसने सर्दी से कंपकंपाती आवाज़ में कहा - भाभी, गुड मॉर्निंग! हम आ गए हैं, अरे! अब तो उठ जाइए।
यह कह कर विमला हर्ष को स्कूल के लिए तैयार करने उसके कमरे
की ओर चली गई।
‘भाभी कल रात तो एकदम हाड़ कंपाने वाली ठंड थी’
(हर्ष के लिए लंच बॉक्स पैक करते हुए विमला
ने कहा)
‘हूं.....!’
‘उसकी इस बात का इससे ज्यादा क्या जवाब
देती.....कल रात मौसम कैसा था, इस बात का अहसास ही कहां हुआ।
मुझे नितिन से फिर उसी बात पर झगड़ा नहीं करना चाहिए था।’ - रिया
अभी अपने आप से सवाल-जवाब कर ही रही थी कि विमला ने चाय का कप रिया की तरफ आगे
बढ़ाते हुए बोली - ‘भाभी क्या बात है, आज
आप बहुत गुमसुम-सी हैं।’
रिया ने अपने माथे की शिकन के जाल को समेटते हुए, मुस्कुरा कर कहा - ‘अरे
नहीं! आज ठंड ज्यादा है न, इसलिए सुस्ती-सी लग रही है।’
‘ओह, हां ठंड तो बहुत
बढ़ गई है। आज भईया बहुत ज़ल्दी कोर्ट के निकल गए....नाश्ता भी नहीं किया..!’
नितिन, कल रात रिया से हुई उस बहस से नाराज़ था शायद....! वह समझ गई थी, लेकिन फिर भी विमला के सामने उसने बात संभालते हुए कहा - ‘हां आज उनको जल्दी जाना था।’
नितिन और रिया की शादी को पांच साल बीत चुके थे। उसने नितिन
को हमेशा बेहद शांत देखा था, लेकिन उसके पीछे की उदासी रिया समझती तो थी, पर आज
तक उस उदासी की वजह उसे मालूम न थी। नितिन एक जिम्मेदार पति और पिता था, अपने परिवार को खुश कैसे रखना है, उसे अच्छी तरह पता
था, लेकिन ये सब वह ऐसे करता जैसे वो कोई ड्यूटी पूरा कर रहा
हो। नितिन ने रिया से कभी कोई मांग नहीं की सिवाय इस बात के कि वो उसकी उदासी की
वजह जानने के लिए कभी जिद नहीं करेगी। उसने रिया को यह भरोसा भी दिया था कि समय
आने पर वह उससे सभी बातें साझा करेगा। रिया ने भी अपनी समझदारी दिखाते हुए नितिन
पर कभी कोई दबाव नहीं दिया, लेकिन कल रात जब रिया ने नितिन
की वो डायरी (जिसमें वह रोज़ रात पढ़ा करता था) पढ़ने के लिए लिया, तो यह देखते ही वह गुस्से में चिल्ला उठा। रिया ने उसके इस रूप को पहले
कभी नहीं देखा था। इसके बाद, दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात
नहीं की।
इस बात को करीब एक हफ्ते बीत चुके थे। आज नितिन रात होने से
पहले घर आ गया था। हमेशा की तरह हर्ष ने पापा को देखते ही अपनी फरमाइशें गिनानी
शुरू कर दीं और फिर दोनों बाप-बेटे शाम की सैर पर निकल गए। नितिन का मूड आज कुछ
बेचैन-सा मालूम हो रहा था। रिया इस बात को समझ गई थी और वो यह भी अच्छी तरह जानती
थी कि नितिन अपनी परेशानी बिना उसके कहे साझा नहीं करेगा। डिनर के बाद, रिया ने नितिन से कहा -
‘चलो छत पर टहलने चलते हैं।’
बिना किसी ना-नुकुर किए नितिन ने तुरंत हामी भर दी, शायद आज उसके पास बहुत-सी बातें थीं,
जिसे वो रिया से साझा करना चाहता था।
इस चांदनी में सर्द हवाएं जैसे छुट्टी पर चली गई थीं। हर
तरफ चांदनी रात का उजाला था।
नितिन ने रिया का हाथ थामते हुए छत पर पड़ी चौकी पर बैठने को
कहा।
‘रिया, आज मुझे तुमसे
बहुत सारी बातें करनी है। हमारी शादी को आठ साल बीत चुके हैं और मुझे मालूम है कि
शुरू से लेकर आज तक तुमने मेरी उदासी को हर पल महसूस किया है, लेकिन इस बात के लिए कभी मुझ पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं दिया।’- नितिन ने कहा|
‘मैं चाहती थी कि तुम अपनी बातें मुझसे तब
शेयर करो जब तुम्हें ठीक लगे न कि तब जब मैं तुम्हें कहूं’ - रिया में नितिन को भरोसा देते हुए कहा।
‘लेकिन आज मैं चाहता हूं कि तुम्हें सारे
सवालों के जवाब मिल जाए। मैं सालों से एक अंतर्द्वंद में जी रहा था। ऐसा लगता था
कि मैं खुद इसे संभाल सकता हूं पर शायद मैं गलत था।’
‘नितिन प्लीज़ अब बातें मत बनाओं। बताओ मुझे
कि आखिर बात क्या है।’
‘कॉलेज टाइम में मैं, दीपक
भईया और रोहन साथ फ्लैट लेकर रहा करते थे। फ्लैट में दो कमरे थे। मैं और दीपक भईया
एक रूम में रहते और एक रूम में रोहन। रोहन की कई गर्लफ्रेंड्स थी, जिनका रूम में आना-जाना लगा रहता। उसके सभी रिलेशन सिर्फ फिजिकल रिलेशन तक
सीमित रहते थे, मुझे रोहन का आए दिन लड़कियां बदलने का रवैया
मुझे पसंद नहीं था। मैं और दीपक भईया अक्सर इस पर बात करते, लेकिन
फिर ये उसकी पर्सनल लाइफ है और सबसे अहम बात कि लड़कियों को भी इससे कोई परेशानी
नहीं थी। उनमें से सभी रोहन के बारे में जानती थीं, बस ये सब
सोच कर हम दोनों इन सब बातों को इग्नोर कर देते। और उस वक्त आर्थिक तौर पर मैं घर
से इतना सक्षम भी नहीं था कि अलग रूम लेकर रहता। चूंकि रोहन का घर मेरे गांव के
पास था, इसलिए घरवाले भी निश्चिंत रहते थे कि उनका बेटा किसी
जान-पहचान वाले के साथ रह रहा है।
एक बार गर्मियों की छुट्टी के बाद जब मैं घर से वापस बनारस
आया, तो देखा कि रोहन के रूम पर
लड़की थी। मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और सीधे फ्रेश होने चला गया। जब मैं
नहा कर रोहन के रूम से अपनी किताबें लेने गया, तब उस लड़की को
देखा, उसकी नज़र अपने टैबलेट के की-बोर्ड में टिकी थी। ऐसे लग
रहा था कि वो मुझे देखना नहीं चाहती थी। खैर मेरी भी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी।
जैसे ही मैं किताबें लेकर रूम से बाहर निकलने लगा रोहन कमरे में घुसते हुए बोला- ‘अरे नितिन! इससे मिलो ये नीतू है.... और नीतू ये नितिन।’
नीतू ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- अच्छा तो ये है नितिन..!
नमस्ते, मैं नीतू।
उसका ये अंदाज़ मुझे बेहद अलग-सा लगा। एकदम अलग, अब तक रोहन की सभी गर्लफ्रेंड्स से।
शाम के वक्त जब हम तीनों खाना खाने बैठे, तब रोहन नीतू के बारे में बताने लगा। उसने
बताया कि नीतू अच्छी लड़की है। इस पर मैं और दीपक भईया एक साथ बोल उठे - ‘तुम्हारे लिए अच्छी है?’
रोहन ने कहा - अरे नहीं, मैं उस मामले की बात नहीं कर रहा हूं। नीतू एज ए पर्सन अच्छी
है। काफी पढ़ती-लिखती है। मॉस कम्युनिकेशन से मास्टर्स कर रही है और स्टूडेंट्स
पॉलिटिक्स में भी काफी एक्टिव है। मेरी इससे दोस्ती करीब छह महीने पहले सोशल
मीडिया में हुई और पिछले हफ्ते उसके एक रिसर्च-प्रोजेक्ट के टाइम मेरी उससे पहली
मुलाकात हुई।
मैंने और दीपक भईया ने चुपचाप उसकी बातें सुनी। इसके बाद, हम दोनों रात में रोहन की बात पर चर्चा
करने लगे। मुद्दा था कि नीतू के बारे में जान कर लग रहा था कि वो समझदार होगी और
बाकी लड़कियों की तरह तो बिल्कुल भी नहीं होंगी, जो अभी तक
रोहन की गर्लफ्रेंड रही है, क्योंकि ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि
रोहन से दोस्ती होने के बाद एक हफ्ते तक भी लड़की उससे मिलने न आ गई हो। फिर नीतू
रोहन के चक्कर में कैसे फंस गई...?
दीपक भईया ने कहा - ‘क्या पता नितिन....फंस गई....फंसाई गई या फंसना चाहती है’
उनकी बात मुझे सही लगी और वो भी रोहन के मैटर में क्या इतना
सोचना.....!
नीतू कभी-कभी फ्लैट पर आती वो। सोशल कामों में वह काफी
एक्टिव रहती थी। आए दिन कहीं न कहीं प्रोग्राम आॅर्गनाइज करवाती, कभी खुद भी स्ट्रीट प्ले करती। फ्लैट पर
उसका आना ज्यादातर इन्हीं कामों के लिए होता, कभी हम सभी को
इन्वाइट करने तो, कभी साथ में लंच करने। नीतू कब हमारी अच्छी
दोस्त बन गई, कुछ पता ही नहीं चला। वह रोहन से प्यार करती थी,
लेकिन उसका प्यार फिजिकल रिलेशन से परे केयर, रिस्पेक्ट
करने वाला था। दीपक भईया तो उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानने लगे थे।
मैंने और दीपक भईया ने भी रोहन के व्यवहार में काफी बदलाव
देखा। नीतू अक्सर रोहन के लिए गिफ्ट्स लाती और रोहन भी उसे पूरा समय देता। इस बीच
मेरी भी नीतू से बात होने लगी। मैं उसे बेहद कम समय में बहुत मानने लगा था। ऐसा
मेरे साथ पहली बार हुआ था। इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की से इतनी बात नहीं की थी।
नीतू मेरी अच्छी दोस्त बन गई थी, वो मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती।
नीतू का फ्लैट पर आना ऐसा लगता जैसे घर का कोई सदस्य आया
हो। इससे पहले रोहन की जितनी भी गर्लफ्रेंड थी, उनके आते ही रोहन के रूम का दरवाज़ा बंद हो जाता और दरवाज़ा
खुलता सिर्फ तब जब लड़की को वापस जाना होता, लेकिन नीतू के
साथ कभी ऐसा नहीं हुआ। वो अपने घर की तरह फ्लैट का ख्याल रखती। खाना बनाने में
अक्सर हम लोगों की मदद करती। उसके आने के बाद हम लोगों के फ्लैट की रंगत ही मानो
एकदम बदल गई थी।
नीतू एक जिंदादिल लड़की थी। उसे हमेशा किसी न किसी एक्टिविटी
में एक्टिव ही देखा। ज़िंदगी जीने के अलग मायने थे उसके। लेकिन रोहन के लिए उसका एक
अलग रूप होता था। उसके प्यार करने का अंदाज़ अलग था। न फोन पर घंटों बातें करना और
न ज्यादा इधर-उधर घूमना। नीतू समझदार थी और उसे पता था कि किसी को हरदम एहसास
दिलाने से कोई आपका अपना नहीं हो सकता। कुछ चीज़ें खुद-ब-खुद होती है। इस दरमियान
मन ही मन मैं भी नीतू को पसंद करने लगा था। कब उसका रोहन को प्यार करना, उसकी केयर करना मुझे जलाने लगा, पता ही नहीं चला। लेकिन नीतू से कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
कहता भी किस मुंह से। नीतू प्यार करती थी रोहन से और वो मुझे सिर्फ अपना दोस्त
मानती थी, सिर्फ दोस्त।
धीरे-धीरे नीतू और रोहन का प्यार गहरा होता जा रहा था। रोहन
ने पहली बार अपने मम्मी-पापा से किसी लड़की यानी नीतू को मिलवाया था। यह सब देख कर
मुझे अज़ीब-सी जलन होने लगी थी और ये जलन दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। एक दिन
मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे इस फ्लैट में नहीं रहना है। मैं दूर चला जाना
चाहता था.....उस जगह से.....नीतू से। मैंने दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में
इंटर्नशिप के लिए अप्लाई किया और कुछ दिन बाद ही उनका लेटर आ गया। मैं छह महीने ही
इंटर्नशिप के लिए चला गया। इस बीच, मेरी और नीतू की बात कम होती गई। कभी-कभार मैसेज से हाल-चाल
हो जाता बस।
इंटर्नशिप को करीब पांच महीने बीत चुके थे। मैं अब दूर हो
चुका था.....बनारस से.....फ्लैट से.....रोहन से और नीतू से नहीं, शायद नीतू से नहीं हो पाया था। एक दिन सुबह
करीब दस बजे नीतू ने कॉल किया। मैं तुरंत मोबाइल उठा कर कॉल रिसीव करने वाला ही था,
लेकिन फिर रुक गया। और कॉल डिसकनेक्ट हो गई। नीतू ने दोबारा कॉल
किया। दिल्ली आने के बाद नीतू की यह चौथी कॉल थी। इस बार मैंने कॉल रिसीव किया।
नीतू-हेलो नितिन....! कैसे हो? यार, भूल गए तुम तो
दिल्ली जा कर?
मैं - अरे नहीं, बस थोड़ा बिजी शिड्यूल है। जानती तो हो तुम इंटर्नशिप का लोचा।
नीतू - हां....खैर, और बताओ सब ठीक और क्या चल रहा आजकल?
मैं - हाँ....सब ठीक। मुंबई की एक कंपनी में अप्लाई किया
था। सलेक्शन हो गया है।
नीतू - वाह। बधाई ढेर सारी। बताया नहीं...।
मैं - अरे एक-दो दिन पहले ही लेटर मिला। सोचा है, जॉब करते हुए बार काउंसिल का एग्जाम दूंगा
फिर कोर्ट में प्रैक्टिस।
नीतू - हां ये ठीक रहेगा।
मैं - और बताओ, आज इतनी सुबह-सुबह कॉल किया। कोई खास बात?
नीतू - हां
मैं - क्या....?
नीतू - दो गुड न्यूज़ है।
मैं - यार तो ज़ल्दी बताओ..।
नीतू - पहला, मेरा प्लेसमेंट हो गया और दूसरा, अगले
महीने मैं और रोहन शादी कर रहे हैं। हम दोनों के घर वाले राज़ी हो गए हैं।
(नीतू की इस बात पर मैं कैसे रियेक्ट करू।
कुछ समझ नहीं आ रहा था।)
मैं - बधाई। कब है शादी...?
नीतू - 15 को, लेकिन तुम्हें एक हफ्ते पहले आना है।
मैं - ठीक है। मैं आ जाऊंगा। अब बाय, बाद में बात करते है।
नीतू - ओके बाय।
अगले महीने की 15 तारीख को नीतू की शादी हो गई। मैं शादी में नहीं जा पाया या
शायद जाना ही नहीं चाहता था। शादी के बाद नीतू और रोहन ने फोन करके मुझे इस बात के
लिए खूब उलाहने भी दिए। दिल्ली में मेरी इंटर्नशिप पूरी हो गई थी। इसके बाद मैं
मुंबई अपनी ज्वाइनिंग के लिए चला गया। इस दौरान, रोहन से बात
हुई तो पता चला कि दिल्ली की एक यूनिर्विसटी में वह असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया है।
नीतू ने अपनी जॉब छोड़ कर फ्रीलांस राइटिंग का काम शुरू कर दिया है।
किस्मत भी कभी-कभी अज़ीब खेल खेलती है। किसी को चाहो तो उससे
मिलाने में आपका साथ दे न दे पर दूर होना चाहो, तो दिन दुनी रात चौगुनी की दूरी से फासले बढ़ाती जाती है। मेरे
और नीतू के संदर्भ में भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। शादी के बाद से मेरी और नीतू की
बात न के बराबर हो गई थी। रोहन से कभी-कभी बात होती तो नीतू का भी हाल-चाल मिल
जाता। इस बीच, मेरे घर तुमसे शादी करने का प्रपोजल आ गया और
हमारी शादी हो गई। मैं शादी से पहले तुम्हें नीतू के बारे सब बताना चाहता था पर
बताता भी क्या....? कि एक लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था,
लेकिन वो किसी और को प्यार करती थी और उसकी शादी हो गई।
नीतू और रोहन की शादी हो चुकी थी। और मेरी तुम्हारे साथ, लेकिन पता नहीं मैं कभी इस बात से आश्वस्त
नहीं हो पाया था कि रोहन नीतू को लेकर क्या वाकई इतना सीरियस है और क्या वो पूरी
ईमानदारी के साथ नीतू से अपनी शादी निभाएगा....?
हमारी शादी में नीतू नहीं आई। रोहन ने बताया था कि उसकी
तबीयत ठीक नहीं है। इस पर मैंने भी कोई ज्यादा बात नहीं की, लेकिन जब हर्ष के इस दुनिया में आने की
खुशखबरी देने के लिए मैंने जब रोहन को कॉल किया तब उसका नंबर नॉट-रिचेबल आ रहा था।
इसके बाद, मैंने नीतू को कॉल किया तो पता चला कि वो शिमला
में है। उसने मुझे बधाई दी और कहा कि अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए उसे पंद्रह दिन
अंदर दिल्ली आना है तब वह मुझसे मुलाकात करेगी।
रिया - ‘तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं था उस वक्त जब मैंने पूछा कि रोहन-नीतू से
बात हुई कि नहीं?’
नितिन - ‘रोहन से मेरी बात हो नहीं पाई थी और नीतू से जब मेरी बात हुई तब मैं घर
में होने वाले फंक्शन में व्यस्त था। इसलिए याद नहीं रहा।
रिया - ‘अच्छा छोड़ो ये सब। फिर नीतू दिल्ली आई...?’
नितिन - ‘हां, करीब एक हफ्ते बाद नीतू का कॉल आया तो उसने
बताया कि वो दिल्ली आ चुकी है। उसने मुझे कैफै में बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें
अभी उसके दिल्ली आने की बात न बताउं।’
कैफे में नीतू से हुई मेरी वो मुलाकात, उससे आखिरी मुलाकात होगी, इस बात का अंदाज़ मुझे नहीं था। उसने मुझे बताया कि उसने रोहन से तलाक ले
लिया है। इस बात से मैं हैरान रह गया कि आखिर ऐसा क्या हुआ इन चंद सालों में कि
नीतू ने रोहन से तलाक ले लिया। मेरे पूछने पर नीतू ने मुझे जो बताया उसे सुनने के
बाद मेरे हाथ-पैर ठंडे हो गए।
उसने बताया कि रोहन का एक चचेरा भाई था- राजन। शादी से पहले, रोहन के साथ नीतू की मुलाकात हुई थी उससे।
वो शादीशुदा था। शादी के बाद जब नीतू और रोहन दिल्ली शिफ्ट हुए तब उनके रिश्ते की
सूरत एकदम से बदल गई। राजन भी दिल्ली में रहता था। एक रात वो अपनी बीवी माधवी के
साथ हमारे यहां डिनर पर आया। देर रात खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने चली गई,
लेकिन माधवी, रोहन और राजन बातें कर रहे थे।
करीब तीन-चार घंटे बाद मेरे कमरे का दरवाजा खुला, तो उसे लगा
कि शायद नितिन आया होगा। लेकिन वो राजन था। उसने मेरे साथ जोर-ज़बरदस्ती करनी शुरू
कर दी, जब मैं चिल्लाने लगी तभी रोहन आया। उसने मुझसे कहा कि
नीतू, राजन के लिए ही तो शादी की है मैंने तुमसे। वो दरसल
माधवी अभी तक मुझे बीवी का सुख दे रही थी, लेकिन जब राजन ने
तुम्हें देखा तो मुझसे कहा कि वो तुम्हें चाहता है। इसलिए मैंने तुमसे शादी की। अब
तुम मेरे भाई की सेवा करो और मैं अपनी भाभी की।’
इसके बाद, राजन रोज हमारे घर आने लगा। करीब पंद्रह दिन तक उसने मेरे साथ बलात्कार
किया। उन लोगों ने मुझे घर में कैद कर दिया था। माधवी भी उनका बराबर साथ दे रही
थी। मैं चाह कर भी अपने घर वालों से कुछ न कह सकी। क्योंकि पापा के गुजर जाने के
बाद घर पर पूरी तरह से भईया-भाभी ने अपना राज जमा लिया था। वो मां को मुझे अपनी
पसंद से शादी करने का आए दिन ताना मारते थे। अगर ये बात उन तक पहुंच जाती तो वो
मां का जीना मुहाल कर देते। एक दिन जब रोहन कुछ दिनों के लिए बाहर गया तब मैं
शिमला अपनी एक दोस्त के पास रहने आ गई जो एक सोशल वर्कर है। इसके बाद, मैंने खुद रोहन से तलाक लेने अपील कोर्ट में दायर की। उन पंद्रह दिनों ने
रिश्ते, विश्वास और शादी जैसे शब्दों से मेरा विश्वास
खत्म-सा हो गया। मैं अंदर से बिल्कुल टूट चुकी थी।
(यह सब बयान करते नीतू की आंखें भर आई जिसे
देखते ही मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था। बार-बार मेरे मन यह बात आ रही थी
कि काश! मैंने नीतू को रोहन के बारे में सब कुछ बता दिया होता। काश! मैं नीतू को
सही समय पर बता पाता कि मैं उससे कितना प्यार करता हूं।)
नीतू ने कहा कि वो नहीं चाहती थी कि ये सब बात रिया को पता
चले। वो परेशान हो जाएगी।
नितिन - ‘तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया और तुमने मुझे कुछ भी नहीं बताया...?’
नीतू - ‘मैंने कई बार सोचा कि तुमसे बात करूं, लेकिन फिर
मुझे लगा कि तुमने अभी-अभी अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की है। मैं तुम्हारे पारिवारिक
जीवन में किसी भी तरह की खलल नहीं डालना चाहती थी।’
नितिन - ‘नीतू, तो वो दोस्त ही किस काम का, जो दोस्त की मुसीबत में काम न आए।’
नीतू - ‘नितिन ज़िंदगी की कुछ मुश्किलें अकेले खड़े रह कर उनका सामना करने के लिए
होती है। अब सब खत्म हो चुका है। मैं अपनी एक दूसरी दुनिया बसाई है। जहां मैं
शिमला में अपनी दोस्त के साथ बलात्कार, एसिड अटैक और घरेलू
हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करते हैं। कभी समय मिले तो रिया और हर्ष को लेकर
आना, अच्छा लगेगा।’
(नीतू की बातें सुन कर मुझे अच्छा लगा। वह एक
जिंदादिल लड़की है, ये उसने साबित कर दिया था)
नितिन - ‘ज़रूर आऊंगा’
इसके बाद, वह अपने होटल के लिए निकल गई और मैं घर आ गया।
नितिन - ‘रिया, नीतू से हुई उस मुलाकात के बाद मैं अपने आपको
उसकी हालत का ज़िम्मेदार मानने लगा। इसके बाद, मैं रोज अपनी
डायरी में बनारस में रहते हुए नीतू के लिए लिखी मेरी बातें पढ़ा करता और सोचता कि
काश! ये बातें सिर्फ इन पन्नों तक सीमित न रहती, तो आज नीतू
की ज़िन्दगी कुछ और होती। वो विश्वास कर पाती शादी और रिश्ते पर। कई बार मैंने सोचा
कि तुमसे ये सारी बातें साझा करूं, लेकिन फिर हर बार यह सोच
कर चुप रह जाता कि न जाने तुम क्या सोचोगी। पर आज सुबह जब सोशल मीडिया से मिली एक
खबर से पता चला कि नीतू को सोशल वर्क के लिए एक बड़े पुरस्कार से दिल्ली में
सम्मानित किया जाअगा, तो आज दिन भर वो बैचैनी फिर से मुझे
परेशान करने लगी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं? इतने
सालों बाद भी मैं उन बातों को नहीं भुला पाया। नीतू से कैफे में उस दो घंटे की
मुलाकात ने मेरे जेहन में एक कड़वी छाप छोड़ दी थी, जिसे मैं
चाह कर भी किसी से साझा नहीं कर पा रहा था। न तुमसे कहने की हिम्मत हुई और न नीतू
से। इस बीच उसने मुझे कॉल भी किया, लेकिन मुझे समझ नहीं आ
रहा था कि मैं किस मुंह से उससे बात करूं....!’
रिया - ‘नितिन मैं ये नहीं कह सकती कि जो हुआ उसे भूल जाओ और ये कोई साधारण बात भी
नहीं कि जिसे इतनी आसानी से भुलाया जा सके, पर तुमसे ये ज़रूर
कहूंगी कि रुकने से कभी कोई हल नहीं निकलता। अब तुम्हें भी आगे बढ़ना होगा, नीतू की तरह क्या तुमने कभी सोचा कि अगर नीतू उस पल हार मान जाती तो शायद
वो आज हमारे बीच ऐसे न होती, लेकिन उसने उस घटना को ही अपना
भाग्य नहीं माना बल्कि वो लड़ती रही....और जीत हासिल की। उस वक्त तुम उसका साथ नहीं
दे पाए, वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन
अगर अब भी तुम उसका साथ नहीं दोगे तो हो सकता आने वाले समय में वो तुम्हारी कॉल
रिसीव न करे। इसलिए बिना समय गंवाए कल सुबह तुम उसे काल करो।’
नितिन - ‘रिया मुझे माफ कर दो। आज तुम्हारी बातों को सुन कर लग रहा है कि मैं
तुम्हें समझ नहीं पाया था। अगर समझता तो ये बातें बताने में कभी देर न करता,
पर आज मैं वाकई बेहद खुश हूं कि तुम्हारे रूप में मुझे एक अच्छी
दोस्त मिल गई जिससे मैं बरसों से अनजान था।’
रिया - ‘नितिन जब जागो, तभी सवेरा। देखो अब सवेरा होने को
है। नीचे चलते है।’
(शादी के बाद, रिया और
नितिन के बीच ये पहली लंबी बात थी। चांदनी रात से शुरू हुई बातों के उस सिलसिले
में कब सुबह हो गई, पता ही नहीं चला। रिया हमेशा नितिन की
दोस्त बनना चाहती थी। उसने हमेशा अपनी दोस्ती के लिए पहल भी की। फिर चाहे वो नितिन
को बिना किसी दबाव के अपनी बात खुद कहने देने की हो या फिर नीतू की बातें जानने के
बाद शक्की बीवी की तरह प्रतिक्रिया देने की बजाय उसे सच्चे दोस्त की तरह सलाह दी।
क्योंकि उसने नितिन की बातें एक बीवी की तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह सुनी थी।
रिया अब समझ चुकी थी कि नितिन का पहला और आखिरी प्यार नीतू थी, लेकिन अब वो नितिन की दोस्त वाली बीवी बन चुकी थी|)
अगली सुबह नितिन ने नीतू को कॉल किया, जिसके बाद पता चला कि वो तीन दिन बाद
दिल्ली आने वाली है, रिया ने भी नीतू से बात की और उसे मिलने
वाले अवार्ड के लिए शुभकामना देते हुए उसे अपने ही घर पर रुकने के लिए आमंत्रित
किया।
- स्वाती सिंह
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(18 कहानियाँ, 18 कहानीकार नामक कहानी-संग्रह (केबीएस प्रकाशन-नई दिल्ली) में प्रकाशित कहानी|)
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