मंगलवार, 29 सितंबर 2015

फ़रीद खां से बना शेरशाह: दास्तां एक कुशल शासक की

        
          शेरशाह को न तो एक कुशल शासक के गुण वंशानुगत मिले थे और न ही किसी राजवंश का तमगा उसे विरासत में मिला। लेकिन उसने अपने जीवन के लिए कार्यस्थल वही चुना जहां का सत्ताधिकारी उसे बनना था। अपने जीवन से लेकर अपनी मृत्यु तक हर क्षेत्र में अपने सशक्त व्यक्तित्व को कायम रखने में वह एक कुशल व सफल शासक साबित हुआ।  

कुछ दिन पहले जब मैं अपने शहर की सड़कों पर घूमने निकली तो सड़क की खस्ता हालत देखकर मन में ख्याल आया कि कितना समय लग जाता है हमारी सरकारों को ये सड़कें बनाने में। और सालभर से भी कम समय में इनका हाल बेहाल होने लगता है। ऐसे में आज से कई सौ साल पहले बनी ग्रांड ट्रंक रोड का आज भी बने रहना एक अजूबा ही तो है। जिसे एक शासक ने अपने मात्र पांच साल के शासन में बनवाया था। इस सड़क की मजबूती उस शासक के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की दास्तां हमें साझा करने के लिए हमेशा प्रेरित करती है। 

सूर साम्राज्य का संस्थापक शेरशाह सूरी भारतीय इतिहास में दर्ज एक ऐसा शासक है जिसने अपने मात्र पांच साल के शासन में एक मज़बूत नगरीय व्यवस्था स्थापित कर दी। शेरशाह का जन्म सासाराम शहर में हुआ था। उनका असली नाम फ़रीद खां था। बचपन में एक शेर को मारने के बाद से उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारा जाने लगा। शेरशाह ने अपनी पढ़ाई जौनपुर से पूरी की। इसके बाद बिहार के स्वघोषित स्वतंत्र शासक बहार खान लोहानी के दरबार में चले गए। लेकिन कुछ सालों में शेरशाह ने बहार खान का समर्थन खो दिया। बहार खान की मौत के बाद शेरशाह नाबालिग राजकुमार के संरक्षक और बिहार के राज्यपाल के रूप में लौट आया। बिहार का राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने प्रशासन का पुनर्गठन शुरू किया और बिहार के मान्यता प्राप्त शासक बन गया। साल 1539 में शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूं को हराकर शेरशाह ने अपने सूर राजवंश की नींव रखी।शेरशाह सूरी एक कुशल सैन्य नेता के साथ-ही-साथ योग्य प्रशासक भी था।

उन्होंने ने अपनी दूरदर्शी सोच के आधार पर जिन नागरिक और प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण करवाया वो आगे चलकर आने वाले मुगल राजवंश के लिए एक मज़बूत नींव साबित हुई। शेरशाह ने तीन धातुओं की सिक्का प्रणाली की शुरुआत की जो मुगलों की पहचान बनी। देश में पहला रुपया भी शेरशाह के शासन में जारी हुआ। जो आज के रुपया का अग्रदूत था। उन्होंने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाया जो उस समय सड़क-ए-आज़म के नाम से जानी जाती थी। इसके साथ ही, भारत में डाक प्रणाली का विकास भी शेरशाह के शासनकाल में हुआ।शेरशाह एक शानदार रणनीतिकार था। इसके साथ ही, उसने खुद को सक्षम सेनापति और प्रतिभाशाली प्रशासक की कसौटी में खरा उतारकर एक नया इतिहास रचा। 1540-1545 के मात्र पांच साल के शासन में अपने साम्राज्य विस्तार के साथ देश को ऐसी नगरीय व्यवस्था देना जो आज की आधुनिक सोच की नींव बनी।

वास्तव में ये काम मिसाल के तौर पर स्थापित कोई महान शख्सियत ही कर सकती है।22 मई 1545 में चंदेल राजपूतों के खिलाफ़ लड़ते हुए शेरशाह सूरी की कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान एक बारूद विस्फोट से मौत हो गई। अपने जन्मस्थान सासाराम में शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही अपने मकबरे का काम शुरू करवा दिया था। गृहनगर सासाराम में स्थित ये मकबरा एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है। शेरशाह का ये निर्माण कार्य भी उसकी दूरदर्शिता को दर्शाता है कि किस तरह उसने अपने आज से लेकर अपने कल तक के अस्तित्व को बनाए रखने का जिम्मा खुद उठाया। चाहे वो नगरीय व्यवस्था बनाकर हो या फिर जीवित रहते अपना मकबरा बनवाना हो।

  स्वाती सिंह 

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