आज के समय में नहाने के साबुन से लेकर मच्छर मारने के उपाय तक आप्शन ही आप्शन है और इन आप्शनों की बाढ़ से शिक्षा-क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है.
प्रोफेशनलिज्म
के इस दौर में एकोनोमिकाली इन्डिपेंडेंट होना कितना ज़रूरी है, इस बात का अंदाज़ा
नौकरियों के लिए बढ़ती कतार और बाज़ार में प्याज के बढ़ते दाम से लगाया जा सकता है.
यूपी की माटी में जन्म लेने के बाद हर माता-पिता का एक परमानेंट सपना होता है,
बच्चा बने - आई.ए.एस या पी.सी.एस.
वो
कहते है न देशकाल-वातावरण के अनुसार चीज़ों की रंगत बदलती है, पर मूल कहीं-न-कहीं
वही रहता है. इसी तर्ज पर आज से करीब आठ-दस साल पहले वकालत को एक ऐसी डिग्री माना
जाता था, जिसके बाद एक नौकरी-पक्की का मन में विश्वास होता था कि कुछ न हुआ तो
वकील तो बन ही जायेंगे. फिर क्या ‘हर-हर महादेव’ के साथ आई.ए.एस की तैयारी का
बोल-बम शुरू कर देते है.
पर
आज के समय में नहाने के साबुन से लेकर मच्छर मारने के उपाय तक आप्शन ही आप्शन है
और इन आप्शनों की बाढ़ से शिक्षा-क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है. उन्हीं में से एक
आप्शन है – मॉस कम्युनिकेशन. कुछ नहीं तो पत्रकार बनना तय है.
शायद
यूपी में बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में जन्म लेने वाली स्नेहा की जिंदगी भी इसी
परंपरा को निभा रही थी. अफ़सर पिता की एकलौती बेटी ने अपने जीवन में कई संघर्ष झेले
थे. आप हैरान होंगे कि भला अफ़सर की बेटी का कैसा संघर्ष? तो जनाब यहां उस मानसिक
संघर्ष की बात हो रही है, जिसे इज्ज़त के नाम पर बनी बड़ी कोठियों की मल्लिकाएं
हमेशा से झेलती आई है. पढ़ाई-लिखाई में अच्छी, स्नेहा 21वीं की वो लड़की थी जिसे हार
मानना बिल्कुल भी पसंद नहीं था. नतीजतन दुनिया के तमाम आडम्बरों से परे उसने अपनी
पढाई को सर्वोपरि रखा. उसका मानना था कि शिक्षा एक ऐसी सारथी है जो हमेशा साथ रहती
है.
बीएचयू
से बी.ए. आनर्स की पढाई के बाद उसने मॉस कम्युनिकेशन में दाखिला लिया. वो
पढ़ने-लिखने की रूचि को एक सही दिशा देना चाहती थी और सिविल की तैयारी से पहले
जॉब-सिक्योरिटी भी ज़रूरी थी. जैसा कि आजकल के प्रोफेशनल कोर्स में इंटर्नशिप का
दौर चल रहा है, ये कोर्स भी इससे अछूता नहीं था.
स्नेहा
ने अपनी इंटर्नशिप के लिए हिंदी के एक जाने-माने अखबार को चुना. पर आज के समय में,
अस्पताल में डॉक्टर से इलाज हो या फिर बिन पैसे वाली इंटर्नशिप बिना सोर्स के कुछ
नहीं होता. स्नेहा के परिवार का तो दूर-दूर तक मीडिया के कोई नाता नहीं था. मास
कम्युनिकेशन की स्टूडेंट होने के नाते स्नेहां सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना बखूबी
जानती थी. उसकी फेसबुक पोस्ट हमेशा उसके साफ़ और तार्किक दृष्टिकोण का परिचय देते
थे, जिसके चलते उसकी फ्रेंड-लिस्ट में उसी मन-मिजाज़ के लोग रहते. उन्हीं में से एक
– फिल्म निर्माता आदेश दास भी थे. स्नेहा से इनकी मुलाक़ात एक सेमीनार में हुई थी.
आदेश
दास ने स्नेहा को उस नामी अखबार में इंटर्नशिप करवाने में मदद की और वो अपनी
इंटर्नशिप के लिए दिल्ली पहुंची. पहली बार वो अपने घर से इतनी दूर थी. वो भी दो
महीने के लंबे
समय के लिए. नोएडा सिटी सेंटर के पास उसका पीजी था. महंगी फीस के साथ बिना रूममेट का कमरा
और खाने की बेकार व्यवस्था ये सब स्नेहा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं
था. मीडिया जगत में परफेक्शन के बिना
कुछ नहीं हो सकता. और परफेक्शन के लिए ज़रूरी है मजबूत बेस. वो
इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ थी. तभी तो उसने इंटर्नशिप के लिए दिल्ली के
जानेमाने हिंदी अखबार को चुना.
( दो महीने बाद )
कैसी हो?.........इंटर्नशिप कैसी रही?
( मेसेज देखते ही वो सहम गयी. इतनी रात में आदेश सर का मेसेज.......वो तो हमेशा सुबह या फिर शाम के वक़्त मेसेज करके हाल-चाल लेते थे. लेकिन आज इतनी रात को? )
‘हम अच्छे है सर. और इंटर्नशिप भी अच्छी रही. बस दो दिन और बाकी है इंटर्नशिप में’. - अनचाहे मन से उसने उसने रिप्लाई किया.
तभी आदेश ने तुरंत दूसरा मेसेज किया.
क्या आप मुझसे सेक्स की बातें करना पसन्द करेंगी?
मेसेज देखने के बाद स्नेहा को अपनी आँखों पर यकीन पाना मुश्किल था. वो विश्वास नहीं कर पा रही थी ये वही इंसान है, जिसने मेरी इतनी मदद की....जिसे मैं सर कहती थी और जिसने हमेशा मुझे एक अच्छे मार्गदर्शक की तरह मीडिया जगत से जुड़ी नसीहतें दी थी...अचानक इस तरह का मेसेज....वो बिलकुल डर गयी....लेकिन खुद को सम्भालते हुए-
माफ़ करियेगा सर ........!
उसने रिप्लाई किया. उसे उम्मीद थी कि शायद उसके इस जवाब के बाद अब कोई मेसेज नहीं आयेगा. लेकिन इंसान की वहशी सोच उसके दिमाग पर चढ़ती जा रही थी. और उम्मीद से परे आदेश ने तपाक से मेसेज किया -
मैं सिर्फ बात करने के लिए के बोल रहा हूँ.
स्नेहा ने इस बार सख्ती से जवाब देते हुए लिखा
....मेरी ना का मतलब ना है सर! माफ़ करिये!
ये कहकर उसने आदेश का नंबर ब्लाक लिस्ट में एड किया.
आज उसने प्रोफेशनलिज्म के उस घिनौने बाज़ार को देखा जहां विश्वास और मर्यादा से परे हर चीज़ की कीमत अदा करनी होती है'.
स्वाती सिंह
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