बुधवार, 22 जून 2016

इस दुनिया में ‘सब बराबर’ !

इंटरनेट की इस दुनिया ने वो काम कर दिखाया है जिसे कई देशों की सरकारें व कानून तक नहीं कर पाए. यह अब ऐसी नई दुनिया बनकर उभरा है, जहां लिंग व जाति से परे ‘सब बराबर’ है और निरंतर विकास की दिशा में एकसाथ आगे बढ़ रहे है.  



सदियों से हम सभी जिस राष्ट्र के बाशिंदे रहे है, समय के बदलाव के साथ मनुष्यों ने उसमें अब अपना एक नया राष्ट्र बनाया है| यह एक ऐसा राष्ट्र है, जिसकी कोई सरहद नहीं और जिसे बने हुए अभी ज्यादा समय भी नहीं बीता है. लेकिन इसकी जनसंख्या अब एक अरब से भी ज्यादा हो चुकी है, जो इसे चीन और भारत के बाद तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश का दर्जा प्रदान करती है. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इस संख्या तक पहुंचने में आधुनिक मानव को 200,000 वर्ष लगे है.



वर्तमान समय में इंटरनेट की इस दुनिया ने सूचना व ज्ञान के प्रसार में अहम भूमिका निभाई है. इंटरनेट की सकारात्मक भूमिका को आंकने के लिए किए गए सर्वेक्षणों में ये तथ्य सामने आये है कि इंटरनेट दुनिया में वीमेन एम्पोवेर्न्मेंट का एक सशक्त व अदृश्य माध्यम बनता जा रहा है. इसके माध्यम से जहां एक ओर महिलाओं के लिए आर्थिक संभावनाओं के द्वार खुले, वहीं दूसरी ओर इसने सोशल मीडिया के ज़रिए उन्हें अपने विचार अभिव्यक्त करने का एक मंच भी प्रदान किया है. हाल ही में हुए कुछ सर्वे बताते है कि इंटरनेट उपयोग करनेवाली महिलाओं में से आधी ने ऑनलाइन नौकरी के लिए अप्लाई किया और करीब एक तिहाई ने इन्टरनेट के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि भी की है.

भारत में तीन साल पहले महिलाओं ने पैल्ली पूला जादा नामक ऑनलाइन स्टोर प्रारंभ किया था,  जिसमें अब करीब 200 से अधिक महिलाएं कार्यरत हैं. शोध बताते है कि जिन देशों में आय व शिक्षा के क्षेत्र में कम असमानता होती है वहां बाल मृत्यु दर कम और आर्थिक विकास की दर अधिक होती है. महिलाएं इंटरनेट से प्राप्त मंचों की सहायता से अपने व समाज से जुड़े तमाम मुद्दों पर अपनी बुलंद आवाज पूरी दुनिया को सुनाने में सक्षम है. कांगों डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में महिलाओं ने अपने अनुभव शेयर करने के लिए इंटरनेट कैफे स्थापित किया और देश के युद्धग्रस्त क्षेत्रों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के विशेष दूत की नियुक्ति करवाने में सफल हुई. इसी तरह केन्या में महिलाओं ने लैंगिक भेदभाव और हिंसा का सामना करने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया. उन्होंने पीड़ितों के समर्थन के लिए ग्रुप बनाया और लीगल चेंज की मांग की.

ब्राजील में महिलाओं ने ‘आई विल नॉट शट अप’ नामक एप बनाया जो महिलाओं पर होने वाले हमलों पर नज़र रखता है. बांग्लादेश में महिलाएं ‘माया’ नामक एप से लाभान्वित हो रही है. ये एप स्वास्थ्य से लेकर क़ानूनी मामलों तक हर प्रकार के सवालों का जवाब देता है इस से दूर दराज के क्षेत्रों की महिलाओं को एक्सपर्ट्स की सलाह मिल जाती है.

इंटरनेट की इस दुनिया ने वो काम कर दिखाया है जिसे कई देशों की सरकारें व कानून तक नहीं कर पाए. यह अब ऐसी नई दुनिया बनकर उभरा है, जहां लिंग व जाति से परे ‘सब बराबर’ है और निरंतर विकास की दिशा में एकसाथ आगे बढ़ रहे है.  

लेकिन दुर्भाग्यवश अपने अनेक लाभों के बावजूद इंटरनेट तक महिलाओं की पहुंच पुरुषों की तुलना में अधिक सीमित है. वैश्विक सत्र पर करीब चार अरब लोग इंटरनेट से वंचित है और उनमें अधिकांश महिलाएं है. विकासशील देशों में इंटरनेट से कनेक्टेड महिलाएं, पुरुषों से 25 फीसद कम है. इंटरनेट के क्षेत्र में यह जेंडर गैप वैश्विक विकास को बढ़ने में अहम भूमिका निभा रहा है. यानी जेंडर गैप स्वस्थ सुरक्षित और न्यायपूर्ण विश्व के निर्माण में बाधक है. हाल में ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2020 तक सभी के लिए इंटरनेट  तक पहुंच सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है. सरकारें गैर सरकारी संगठन व व्यावसायिक उपक्रम इस दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं.

स्वाती सिंह 












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