रविवार, 28 अगस्त 2016

ज़रूरी है आज फेमिनिस्ट होना....

औरतों और पुरुषों को बराबर मानने वाला और उनकी बराबरी के लिए लड़ने वाला हर इंसान फेमिनिस्ट कहलाता है| फेमिनिस्ट विचार यह नहीं है कि सत्ता के ढांचे को पलट दिया जाए बल्कि फेमिनिस्ट विचार यह है कि औरतों और पुरुषों के बीच सत्ता का संबंध ख़त्म हो जाए|


आजकल लोग अपने नाम के आगे किसी भी तरह के ‘-इस्टऔर इज्म का टैग लगने से खुद को दूर रखना चाहते हैं| उन्हें लगता है कि इससे उनकी एक छवि बन जाएगी| और दूसरों का उनके बारे में सोचने का दायरा छोटा हो जाएगा| ऐसे दौर में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का खुद को ‘फेमिनिस्ट’ कहना वाकई काबिले तारीफ़ है| अपने जन्मदिन के दिन ‘गैल्मर’ मैगज़ीन के लिए उन्होंने एक लेख लिखा, जो दुनिया की राजनीति या अर्थव्यस्था से परे केंद्रित था - महिलाओं पर| उन्होंने अपने लेख में लिखा-  
 ‘औरत होने के लिए ये एक अच्छा समय है| ऐसा मैं अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर ही नहीं, एक फेमिनिस्ट होने के तौर पर कह रहा हूं| अपनी बेटियों साशा और मालिया को पालते हुए मैंने यह महसूस किया है कि लड़कियों के ऊपर समाज का कितना प्रेशर रहता है| यह हमें दिखता नहीं| पर हमारा कल्चर चुपके-चुपके उनके दिमाग में यह भर रहा होता है कि उन्हें कैसा दिखना है, किस तरह का बर्ताव करना है| यहां तक कि किस तरह सोचना है| हमें यह सोच बदलनी होगी, जिसके चलते लड़कियों को चुप-चाप रहना और लड़कों को मर्दाना होना पड़ता है| जो हमारी बेटियों को खुलकर बोलने और लड़कों को आंसू बहाने से रोकता है| हमें खुद को बदलना होगा|’

कहते है न कि ‘बात निकलेगी तो दूर तल्क जायेगी’| अब जब बराक ओबामा जी ने फेमिनिस्म (नारीवाद) पर बात शुरू की है तो इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम भारतीय सन्दर्भ में भी इसपर एक चर्चा करते है|
सर्वप्रथम, हमारे समाज में नारीवाद को समझने से पहले उन भ्रांतियों का जिक्र करना ज़रूरी है जो ‘नारीवाद’ शब्द को हमारे बीच कुख्यात करने में अहम भूमिका निभा रहा है| जैसे - नारीवाद का मतलब पुरुषों की आलोचना करना है; सिर्फ महिलाएं ही नारीवादी हो सकती है; नारीवादी होने का तात्पर्य मातृसत्ता से है या हर कामयाब औरत नारीवादी होती है, इत्यादि|
नारीवाद से जुड़ी ये सभी ऐसी भ्रांतियां है जिसने हमारे समाज में ‘नारीवाद’ शब्द को एक ऐसे टैग के तौर पर प्रसिद्ध कर दिया है जिससे आज हर शख्स अपने आपको बचाने की कोशिश करता है|
इन सभी भ्रांतियों के विपरीत, नारीवाद एक ऐसा दर्शन है, जिसका उद्देश्य है - समाज में नारी की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उसकी बेहतरी के लिए वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना| नारीवाद ही बता सकता है कि किस समाज में नारी-सशक्तीकरण के कौन-कौन से तरीके या रणनीति अपनाई जानी  चाहिये। लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी हमारे समाज में बहुत से लोग यह मानते ही नहीं कि महिलाओं की स्थिति दोयम दर्ज़े की है। महिलायें किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं, इसके बावजूद उन्हें अवसरों से वन्चित कर दिया जाता है| - नारीवाद ऐसी परिस्थितियों के विषय में बताता है|



नारीवाद को राजनैतिक आंदोलन का एक ऐसा सामाजिक सिद्धांत भी माना जाता है जो स्त्रियों के अनुभवों से जनित है। हालांकि नारीवाद मूलतः सामाजिक संबंधो से अनुप्रेरित है पर कई स्त्रीवादी विद्वान का मुख्य जोर लैंगिक असमानता और औरतों के अधिकार पर होता है|

भारत की ऐतिहासिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विभिन्नता से जन्मी परिस्थितियों के चलते ही भारत में नारीवाद की प्रकृति और प्रवृत्ति पश्चिम के नारीवाद से अलहदा रही है। यहां नारीवाद की शुरुआत ‘वैचारिक संघर्ष’ से हुई जिसकी अगुआई पुरुषों ने की थी| और बाद में इसमें स्त्रियां शामिल हुई। इन्हीं भिन्नताओं के कारण पश्चिमी देशों में महिलाओं को नागरिक अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा; जबकि भारतीय महिलाओं को मताधिकार और अन्य नागरिक अधिकार स्वत: ही प्राप्त हो गए। पर दुर्भाग्यवश नारीवाद के आगमन का प्रमुख कारक ‘वैचारिक संघर्ष’ आज भी नए-नए रूप लिए हमारे समाज में कायम है| 
नारीवाद का सबसे बड़ा योगदान है "सेक्स" और "जेन्डर" में भेद स्थापित करना है| सेक्स एक जैविक शब्दावली है, जो स्त्री और पुरुष में जैविक भेद को प्रदर्शित करती है| वहीं जेन्डर शब्द स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक भेदभाव को दिखाता है| जेन्डर शब्द इस बात की ओर इशारा करता है कि जैविक भेद के अतिरिक्त जितने भी भेद दिखते हैं, वे प्राकृतिक न होकर समाज द्वारा बनाये गये हैं और इसी में यह बात भी सम्मिलित है कि अगर यह भेद बनाया हुआ है तो दूर भी किया जा सकता है|



भारत में नारीवाद की उपयोगिता पर प्रश्न लगाने वाले तर्क देते हैं कि भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम की नारीवादी महिलाएँ उसे भी अपनी तरह भ्रष्ट कर डालना चाहती हैं| अब सवाल यह है कि वर्तमान समय में सिर्फ़ भारत, अमेरिका या यूरोप ही नहीं, बल्कि एशिया, दक्षिण अमेरिका, अफ़्रीका के भी देशों में नारी आज अपनी परिस्थितियों को बदलने की माँग कर रही है और वह भी बिना अपनी संस्कृति को छोड़े|

नारीवाद, औरतों की निर्णय लेने और चयन की स्वतन्त्रता की बात करता है, न कि सभी औरतों को अपने स्वाभाविक गुण छोड़ देने की, चाहे वे नारीसुलभ गुण हों या कोई औरआज हमारे समाज में भ्रूण-हत्या, लड़का-लड़की में भेद, दहेज, यौन शोषण, बलात्कार आदि ऐसी कई समस्याएँ हैं, जिनके लिए एक संगठित विचारधारा की ज़रूरत है| इसलिए आज भारत में नारीवाद की सख्त ज़रूरत है| भारतीय नारीवाद, जो कि भारत में नारी की विशेष परिस्थितियों के मद्देनज़र एक सही और संतुलित सोच तैयार करते हुए ‘वैचारिक संघर्ष’ में विराम लगा सके| ताकि नारी-सशक्तीकरण के कार्य में सहायता मिले

स्वाती सिंह 


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