बुधवार, 3 अगस्त 2016

विकास का जीवन-आदर्श : बाबर अली

 सबसे छोटा हेडमास्टर 

आज के समय में जब हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और जीवन को सफल बनाने की दौड़ में भागते रहते हैं, ऐसे में बाबर अली जैसे बच्चे भी हैं जो देश और समाज के लिए एक मिसाल हैं। बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का यह लड़का सरकारी स्कूल में पढ़ता है और स्कूल न जाने वाले ग्रामीण बच्चों को खुद पढ़ाता है। आज उसके स्कूल में सैकड़ों बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं। वह दुनिया का सबसे छोटा हेडमास्टर है। उससे बेहतर जीवन-आदर्श आजकल के बच्चों के लिए भला कौन हो सकता है?



स्कूल के दिनों में मैं सुबह सात बजे बस अड्डे पर पहुंच जाती थी। तब मेरे स्कूल का समय साढ़े सात बजे से था।अपने घर से बस अड्डे तक जाते समय एक मैदान में कई बच्चों को मैं खेलते हुए देखती तो मुझे आश्चर्य होता कि क्या ये पढ़ने नहीं जाते जो स्कूल के समय यहां खेलने आ जाते है? मेरे मन में यह एक बड़ा सवाल था। 
 एक दिन घर के पास रहने वाली आशा आंटी से मैंने उनके बारे में पूछ ही लिया। उन्होंने बताया कि ये सभी बच्चे पास के एक गांव से आते हैं। गरीबी के कारण ये स्कूल नहीं जाते क्योंकि इनके लिए पढ़ाई से ज्यादा जरूरी अपने परिवार की मदद करना है। इनमें से कोई दिनभर माता-पिता के साथ र्इंट-पत्थर का काम करता है, तो कोई चाय की दुकान पर लोगों को चाय पिलाता है। इनका समय इन्हीं कामों में बीत जाता है। इसलिए ये बच्चे सुबह यहां आकर अपना मन बहला लेते है। उनके घर में किसी ने स्कूल का मुंह नहीं देखा। 

 यह जान कर मुझे बहुत दुख हुआ। तभी मैंने सोच लिया कि एक दिन मैं ऐसे बच्चों को जरूर पढ़ाऊंगी। जब तक स्कूल में पढ़ाई चलती रही, तब तक इतना वक्त नहीं मिल पता था कि इस बारे में सोच भी पाऊं, पर जब कॉलेज की पढ़ाई शुरू हुई, तो शाम को मैं अपने घर के आसपास के बच्चों को पढ़ाने लगी। शुरू में चार से पांच बच्चे पढ़ने आते थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई।

 इनमें कई बच्चे ऐसे थे जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था, मगर पढ़ाई के प्रति उनकी लगन गजब की थी। एक दिन मैंने सभी बच्चों को अपने जीवन-आदर्श पर एक निबंध लिख कर लाने के लिए कहा। अगले दिन बच्चों ने अपने-अपने लिखे निबंध मुझे दिखाए। जिसमें किसी के आदर्श गांधीजी थे, तो किसी के चाचा नेहरू। मगर विकास का जीवन-आदर्श सबसे अनूठा था। उसने अपने निबंध में लिखा था -

    ‘मेरा जीवन-आदर्श बाबर अली है। उसे अक्तूबर 2009 में बीबीसी की तरफ से दुनिया का सबसे छोटा हेडमास्टरका खिताब दिया गया। तब वह सिर्फ 16 साल का था। बाबर का स्कूल उसके घर से करीब 12 किलोमीटर दूर है। वहां रिक्शे सिर्फ दस किलोमीटर तक ही जाते हैं। बाकी दो किलोमीटर की दूरी वह पैदल तय करता है। बाबर के घर में ऐसा कोई नहीं था जो कभी स्कूल गया हो, पर उसके माता-पिता चाहते हैं कि वह पढ़-लिख कर एक अच्छा इंसान बने।
  बाबर के घर के आसपास कई बच्चे गरीबी और गांव के पास स्कूल न होने की वजह से नहीं पढ़ पाते थे और छोटी सी उम्र में दूसरों के घरों और खेतों में काम करते। इससे उन्हें इतना पैसा नहीं मिलता कि वे अपने लिए एक किताब भी खरीद सकें। 
  बाबर ने इन्हीं बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उसका घर इतना बड़ा नहीं था कि वह किसी बड़े कमरे में सबको पढ़ा सके। उसके घर के पीछे एक बड़ा बरामदा था, जहां इन बच्चों को वह पढ़ाने लगा। दिनभर स्कूल में अपनी पढ़ाई करने के बाद शाम को बाबर ने इन बच्चों के लिए छोटे-से स्कूल की तरह एक शुरुआत की। अब यहां करीब आठ सौ छात्र पढ़ रहे हैं। ये सभी बच्चे दिनभर अपना काम खत्म करने के बाद यहां आकर पढ़ाई करते हैं। 
 बाबर किसी बड़े स्कूल में नहीं पढ़ता। वह भी मेरी तरह एक सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है। वह स्कूल में पढ़ाए गए सभी पाठ को मन लगा कर याद कर लेता है और फिर अपने स्कूल के बच्चों को पढ़ाता है। बाबर अपने साथ-साथ इतने सारे बच्चों को शिक्षा दे रहा है, जिसकी व्यवस्था उसके गांव में नहीं है।  
  बाबर ने अपनी इस मुहिम के बारे में बताया कि शुरू में तो मैं अपने दोस्तों के साथ सिर्फ पढ़ाई का खेल करता था, लेकिन फिर महसूस किया कि इस तरह तो बच्चे कभी लिखना-पढ़ना नहीं सीख सकेंगे। उन्हें पढ़ाना मेरा फर्ज है।’  
  बाबर की इस पहल से उस क्षेत्र की साक्षरता दर बढ़ी  है और उसे इसके लिए कई इनाम भी मिले हैं। बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में रहने वाले बाबर की कहानी मेरे जीवन से मिलती-जुलती है। जिस तरह उसने अपनी सभी मुश्किलों को पार कर मिसाल कायम की है, मैं भी उसी तरह अपने घर के आसपास के बच्चों को भी पढ़ा कर उन्हें आगे बढ़ने में मदद करना चाहता हूं.........।

  सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला विकास स्वभाव से जितना शर्मीला है, पढ़ाई में उतना ही गंभीर। उसका यह निबंध दिल को छू गया। मैंने उससे पूछा कि उसे बाबर अली के बारे में इतना सब कुछ कैसे मालूम? तब उसने बताया कि पिछले महीने जब मैं सभी बच्चों को कंप्यूटर में इंटरनेट चलाना सिखा रही थी, तब उसने दुनिया के सबसे छोटे हेडमास्टरको सर्च किया और उसे बाबर अली के बारे में पता चला। उसके बारे में सभी जानकारियों को अपनी कॉपी में लिख लिया था।

  बाबर की कहानी जानने के बाद विकास ने भी अपने घर के आसपास के पांच बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है। 

 आज के समय में जब हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और जीवन को सफल बनाने की दौड़ में भागते रहते हैं, ऐसे में बाबर अली जैसे बच्चे भी हैं जो देश और समाज के लिए एक मिसाल हैं। बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का यह लड़का सरकारी स्कूल में पढ़ता है और स्कूल न जाने वाले ग्रामीण बच्चों को खुद पढ़ाता है। आज उसके स्कूल में सैकड़ों बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं। वह दुनिया का सबसे छोटा हेडमास्टर है। उससे बेहतर जीवन-आदर्श आजकल के बच्चों के लिए भला कौन हो सकता है?


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