शनिवार, 30 जुलाई 2016

कहानी : अनचाहा होता ‘एक रिश्ता’

उस दिन ऑफिस में मेरा वीकली ऑफ़ था| अब छुट्टी का हर दिन मेरे लिए बड़ा ही मनहूसियत भरा होता था| वही रोज की तरह अपने समय पर उठना, चाय पीना और चुपचाप दिनभर घर में अपना समय बिताने के लिए कभी इस काम तो कभी उस काम में खुद वो व्यस्त रखने की कोशिश करना और इन कोशिशों में दिन कैसे बीत जाता पता ही नहीं चलता था| पर जब मैं और प्रिया ‘हम’ हुआ करते थे तब ऐसा बिल्कुल नहीं था| हमारा पूरा दिन एकदूसरे से बातें करने, एकदूसरे के कामों में हाथ बटाने और प्यार की ढेर सारी बातें करने में बीतता था| लेकिन अब उस एहसास को गुजरे जमाना बीत चुका था| अब हमारी छत तो एक थी पर हम नहीं| घर में अब दो अलग इंसान थे - वो ‘प्रिया’ और मैं ‘रूद्र’| वक़्त तो अब भी बीत रहा था या यूँ कहें कि मैं वक़्त काट रहा था|

  
मैं रोज की तरह सुबह-सुबह अपनी बालकनी में चाय पीने बैठा ही था तभी व्हाट्सएप्प पर मेरे दोस्त आदेश का मेसेज आया - गुड मॉर्निंग के मेसेज के साथ उसने एक फोटो भी सेंड की थी| गुड मॉर्निंग का रिप्लाई करके मैं उसकी भेजी तस्वीर को डाउनलोड करने लगा|
‘ये आदेश भी न.......| ‘सब बाबा विश्वनाथ की कृपा है’ उसका फेवरेट डायलॉग था| पता नहीं ये कैसे मेरे मन की उलझन को समझ जाता है| अब देखो आज जब मैं अपने इस दिन को कैसे बिताऊँ ये सोचते-सोचते बीती यादों में डूबने लगा तभी इस मोह से मुक्त होने का आदेश देते हुए आदेश का मेसेज आ गया - यही तो है बाबा विश्वनाथ की कृपा’. - मैंने मन में सोचा|
लो, एक बार फिर खुद से बात करने में मैं उसे जवाब देने में लेट हो गया और आदेश का दूसरा मेसेज आ गया - कैसी लगी फ़ोटो?
बिना समय गवाये मैंने फोटो को ओपेने किया और देखा कि किसी दीवार की फ़ोटो थी, जिसमें एक चित्र बना हुआ था| नीचे था रेतीला एकदम गुमसुम-सा रेगिस्तान| जिस पर कुछ आदिवासी महिलाओं को सिर पर पानी की मटकी लेते दर्शाया गया था| एकदम सिम्पल और बेहद इफेक्टिव लग रहा था वो चित्र| पास में एक पेड़ चमकते सूरज की किरणों में अपनी हरियाली बिखेर रहा था| आँखों को सुकून देने वाला ये चित्र किसने बनाया? मैंने तुरंत आदेश को मेसेज करके पूछा|
आदेश - मैंने बनाया है और कौन बनाएगा?
मैं- अरे वाह! तुम्हारी इस क्रिएटिविटी ने तो एक बार फिर से मुझे इम्प्रेस कर दिया| बहुत बढ़िया|
आदेश  – थैंक यू| वैसे अभी भी काम जारी है|
मैं- ओह अच्छा| तब फिर तुम फ्री हो जाओ तब बात करते है|
आदेश - ठीक है| और चाय-नास्ता हो गया?
मैं- हाँ बस अभी चाय ही पी रहा हूं|
आदेश - ठीक है  फिर हम फ्री होकर मिलते है|
मैं- ठीक है .......बाय|
आदेश - बाय|

‘कितना क्रिएटिव हैं आदेश| उसके व्यक्तित्व के बहुरंग मुझे हमेशा आवाक कर देते है| मैं तो कभी क्रिएटिव रहा ही नहीं और न कभी सोचा कि कुछ ट्राई करूँ| हर रोज बस वही डेली रूटीन फॉलो करना, यही तो थी मेरी जिंदगी| हाँ एकबार ज़रूर.......कैंडल की सजावट......(और दिल में हल्के दर्द का एहसास)!’- मैं भी क्या सोचने लगा| तुरंत अपना म्यूजिक सिस्टम ऑन किया और भूले-बिसरे गीतों की दुनिया में खोने लगा| कानों में पहले गीत के शब्द सुनाई पड़े| 

                                               ‘तुम अगर साथ देने का वादा करो........|’ 

प्रिया ने कई दिन पहले मुझसे शिकायत की थी, तुम ऑफिस में दिनभर लिखने-पढ़ने का काम करते तो पर आजतक मेरे लिए कभी कुछ नहीं लिखा| कविता तो क्या कभी दो लाइनें भी नहीं कही मेरे वास्ते| पर कुछ दिनों बाद ही छोटी-सी नोंकझोंक के बाद से मेरे और प्रिया के बीच दूरी-सा एक बीज पनपने लगा था| मैं भी ऑफिस में अपनी बढ़ती व्यस्तता की वजह से उन दिनों उसकी नाराजगी पर ध्यान नहीं दे पाया| सोचा हमेशा की तरह वो खुद-ब-खुद समझ जायेगी और सब पहले जैसा हो जाएगा| तीन महीने बाद उसका जन्मदिन था| सोचा तब तक तो प्रिया का गुस्सा खत्म हो जायेगा नहीं तो मैं उसे मना ही लूँगा|
उसके बर्थडे के दिन हर साल की तरह जब मैं उसे सुबह उसके पसंदीदा लाल गुलाब देकर अपनी बाहों में भरके विश करने उसके करीब गया तो उसने मुझे खुद के पास से ऐसे झटक दिया जैसे कि मैं कोई अजनबी हूं| मैं समझ गया अभी तक प्रिया मुझसे नाराज है और उससे कुछ भी कहना मैंने ठीक नहीं समझा, क्योंकि जब वो गुस्से में होती तो किसी के कुछ भी बोलने पर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चला जाता| उस दिन नास्ता करने के बाद प्रिया तैयार हुई| गुलाबी साड़ी में बेहद सुंदर लग रही थी और उसने मेरे दिए हुए मोतियों का सेट भी पहना था जिसने मेरी प्रिया की सुन्दरता में चार चाँद लगा दिया था| माथे पर उसकी वो लाल बिंदी सिंदूरी सूरज की आभा बिखेर रही थी| दुनिया की सबसे सुंदर परी लग रही थी मेरी प्रिया उस दिन| लेकिन आज उसने मुझसे एक शब्द तक नहीं कहे और अपनी कार में बैठकर कहीं चली गयी| मैं समझ गया कि वो अपनी बचपन की सहेली नेहा से मिलने गयी होगी| बहुत-ही अच्छी बॉन्डिंग थी उनदोनों में| अब मैंने भी तय कर लिया था कि – आज का दिन मेरी प्रिया का सबसे यादगार दिन होगा|

मार्केट जाकर मैंने उसकी पसंदीदा शॉप से उसके फेवरेट वनिला फ्लेवर के केक का ऑर्डर दे दिया| घर में मेड को भी प्रिया की पसंद का डिनर तैयार करने को कह दिया और खुद अपने कमरे को प्रिया की पसंदीदा फ्रेगरेंस वाली कैंडल से सजाने में जुट गया| उसदिन इंटरनेट ने मेरा बहुत साथ दिया| पहली बार मुझे एहसास हुआ था कि इंटरनेट बड़े काम की चीज़ है| उस दिन की बेहतरीन सजावट का श्रेय भी इंटरनेट को ही जाता है| मेड खाना बनाते-बनाते बार-बार किचेन से झांकती और कहती – साहब! आप हमें बता दें, हम सजा देती है|
मैंने भी उससे साफ़-साफ़ कह दिया – ‘नहीं मैं कर लूँगा तुम खाने पर ध्यान दो| कोई भी गडबड नहीं होनी चाहिए’| इस सजावट अभियान में शाम कब हो गयी पता ही नहीं चला| सब काम छोड़कर मैं मार्केट केक लेने चला गया| वापस आते ही याद आया कि इन सबमें तो मैं प्रिया के लिए लाये हुए बर्थडे कार्ड पर उसके लिए वो कविता ही लिखना भूल गया जो उसके लिए मैंने सोची थी| फिर सोचा पहले डेकोरेशन को फाइनल टच दे दूं फिर लिखना शुरू करूंगा|
मन-ही-मन मैं सोचता रहा – ‘आज मेरा ये सरप्राइज देखकर प्रिया खुश हो जाएगी और उसका गुस्सा यूँ छूमन्तर हो जायेगा| फिर हमलोग एकसाथ डिनर करेंगे| डिनर से याद आया - अभी मुझे डिनर का भी मुआयना करना था, पता नहीं डिनर कम्पलीट हुआ भी या नहीं| जबतक खुद जाकर न देखो तब तक कोई काम परफेक्ट नहीं हो सकता’| सारी तैयारी करते-करते रात के दस बज चुके थे| लेकिन प्रिया अब तक घर वापस नहीं आई थी| कई बार मन हुआ कि उसे कॉल करूं, फिर लगा कि आज उसका दिन है और प्रिया के ही घर तो गयी होगी वो| ऐसे में कॉल करके उसे क्या डिस्टर्ब करूं|

तभी अचानक याद आया - अरे! कार्ड पर तो मैं कुछ लिखना ही भूल गया| तुरंत कार्ड लिया और हाथों में पेन पकड़ते ही मन में कविता के लिए सोचे शब्द कौंधने लगे........साथ ही हरिद्वार में शाम की आरती का वो पल याद आ गया जब मैं प्रिया की हथेली को अपनी हथेली में लिए ‘हम’ गंगा के पानी में दीप प्रवाहित कर रहे थे और कार्ड पर प्रिया के लिए कविता की पहली पंक्ति रच गयी –

गंगा की लहरों को
छूकर मैंने उस दिन
रच दिया था तुम्हारे ललाट
पर एक जल-बिंदु और
अनायास ही बोल पड़ा-
आज से मैं और तुम
हो गए हम|

तभी गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई दी| लगता है प्रिया आ गयी| लेखनी पर तुरंत विराम लगाते हुए बस कार्ड के कार्नर में जल्दबाजी में लिख दिया ‘योर लविंग हसबैंड’|

आज प्रिया का हाथ पकड़कर मैं उसे घर के अंदर लाऊंगा, जैसे शादी के बाद हमदोनों ने एकदूसरे का हाथ पकड़कर घर में प्रवेश किया था| – मैंने सोचा |जैसे ही मैं बाहर पहुंचा तो देखा कि नेहा  प्रिया को घर छोड़ने आई थी| मुझे देखकर उसने मुस्कुराते हुए ‘हेल्लो’ किया| तभी प्रिया ने बात काटते हुए कहा- ‘चल! कल मिलते है’| इस तरह मेरी प्रिया ने मुझे कभी भी नज़रअंदाज नहीं किया था| जैसे मैं था ही नहीं उस पल वहां| उसकी सहेली के जाने के बाद मैंने तुरंत प्रिया का हाथ थाम लिया|

‘हैप्पी बर्थडे डिअर! आज मेरी प्रिया दुनिया की सबसे सुंदर परी लग रही है| तुम्हें पता है आज तुम्हारा रूद्र अपनी सबसे प्यारी प्रिया के साथ उसके बर्थडे पर हमारी ज़िन्दगी का एक यादगार लम्हा जीना चाहता है’|

प्रिया ने कोई भी जवाब नहीं दिया| मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए वो चुपचाप कमरे में जा कर सो गयी| ‘थक गयी होगी शायद’- मैंने सोचा| प्रिया के सिरहाने बैठकर मैंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ‘प्रिया! मुझे तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं’| प्रिया की आँखें खुलते ही पास में रखे केक को उसके सामने रखा दिया| उस वक्त कमरे का हर कोना मेरी प्रिया की पसंदीदा कैंडल से रोशन था| प्रिया उठकर बैठ गयी| मैंने उसके सामने कार्ड आगे करते हुए कहा - हैप्पी बर्थडे प्रिया!

प्रिया ने झटके से कार्ड को छीना और तुरंत फाड़ दिया| फिर उठकर उसने कमरे की लाइट्स ऑन कर दी और चिल्लाते हुए कहा - क्या चाहते हो तुम? क्या साबित करना चाहते हो ये सब करके? पता नहीं किस मनहूस घड़ी में तुमसे मेरी शादी हुई| मैं अब इस रिश्ते को और नहीं ढो सकती| आज से मेरे और तुम्हारे बीच कोई रिश्ता नहीं है|

उसकी बातें मेरी कानों में तेज़ जलन-सी होती कब दिल के तेज़ दर्द में बदल गयी मुझे पता ही नहीं चला| मेरा दिमाग बिल्कुल सुन्न होने लगा था| खुद को संभालने में असमर्थ मेरे लब उससे कुछ न कह सके| बस चुपचाप मैं उसे सुनता रहा| प्रिया गुस्से में बाहर चली गयी और ड्राइंग रूम में जाकर सो गयी| मेरी पूरी रात कमरे की फर्श पर बैठे बीती| प्रिया और मेरे खुशनुमा पलों को याद करते उसकी बातों से सिसकियां लेते अपने रिश्ते को अपने आंसुओं में बटोरते बीती|

तभी अचानक एक आवाज कानों में पड़ी – साहब! चाय पी ली हो आपने, तो नास्ता लगा दूं? झटके से मेरी खुली आँखों की नींद टूटी और मैंने कहा – हां आता हूं|

स्वाती सिंह 
  




       

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