बुधवार, 27 जुलाई 2016

फीयरलेस की मिशाल है नादिया

भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रस्तुतिकरण और दर्शकों के मन में नायिकाओं की बनी एक तस्वीर को बदलने के लिए खतरनाक स्टंट करने वाली नादिया  बिल्कुल सटीक नायिका साबित हुई|

स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा का वह पहला दिन था| कक्षा में कई नए चेहरे दिखाई पड़ रहे थे| हमारी नई क्लास की क्लास-टीचर बत्रा मैडम हमेशा की तरह अपने नए सेशन की पहली क्लास में इंट्रो-सेशन रखा था| उन्होंने एक तरफ से सभी को अपना परिचय देने को कहा| सभी ने अपने-अपने बारे में बताया| तभी स्कूल के चपरासी अंकल एक लड़की के साथ क्लास में पहुंचे और मैडम से कहा कि ‘मैम न्यू एडमिशन है’| मैडम ने उस लड़की को क्लास में आकर बैठने की आज्ञा दी| मैडम ने जब उससे अपना परिचय देने को कहा तो उसने कहा कि ‘मेरा नाम नेहा है| मेरा पसंदीदा खेल मार्शल आर्ट है और मैं बड़ी होकर स्टंटवीमेन बनना चाहती हूं|’

उसकी रूचि और लक्ष्य क्लास के सभी स्टूडेंट्स से बिल्कुल अलग थे| नतीजतन सभी उसकी तरफ आश्चर्यचकित होकर देखने लगे| बहुत-से स्टूडेंट्स को तो यह तक नहीं मालूम था कि स्टंटवीमेन क्या होता है? और वे आपस में खुसुर-फुसुर करने लगे| कुछ ही दिनों में नेहा स्कूल में मार्शल-आर्ट के टीचर की चहेती स्टूडेंट बनने के साथ-साथ स्कूल चैम्पियन भी बन गयी| धीरे-धीरे वो मेरी भी अच्छी दोस्त बनती गयी| एक दिन लंच टाइम में हमलोग एकदूसरे से अपने करियर को लेकर बात कर रहे थे| तब मैंने नेहा से पूछा कि तुम्हें स्टंटवीमेन बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली? तब नेहा ने बताया कि नादिया मेरी आदर्श है और मैं बड़ी होकर उनकी तरह बनना चाहती हूं| मैंने यह नाम पहली बार सुना था| मैंने नेहा से पूछा कि वो कौन है? तो नेहा ने जवाब दिया कि मैं कल अपनी डायरी लाऊंगी जिसमें मैंने उनके बारे में लिखा है| तब तुम्हें विस्तार से उनके बारे में पता चल जायेगा| अगले दिन नेहा ने मुझे अपनी वो डायरी दी और स्कूल से घर वापस आते ही मैं तुरंत वो डायरी पढ़ने में जुट गयी|

डायरी के पहले पन्ने के शीर्ष में लिखा था -

चलती ट्रेन में बिना किसी डर के उन्होंने दस से भी ज्यादा गुंडों को बिना किसी हथियार के ढेर कर दिया| ट्रेन की छत पर एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे पर भागते हुए एक बार भी उनके पैर नहीं लडखडाये| (फिल्म- मिस फ्रंटियर मेल (1936) का एक सीन)
                                         कितनी निडर है वो| इसलिए ही तो वो मेरी आदर्श है|


एक समय था, जब हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाता था| यहां की भौगोलिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संपन्नता ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा| वहीं भारत के मसालों ने विदेशियों को लुभाना शुरू किया| आज भी भारत की ये विशेषताएं दुनियाभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं| भारतवासियों ने हमेशा से ही यहां आने वाली विदेशी संस्कृति और सभ्यता को न केवल अपने दिल में बसाया बल्कि इसके साथ-साथ ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश भी दुनिया को दिया|
19 वीं के प्रारंभ से भारत में सिनेमा-निर्माण का दौर शुरू हुआ और बहुत-ही कम समय में यह दुनिया में एक आकर्षण बनता गया| बर्फ़ीली वादियों में रेशम की साड़ी में लिपटी नायिका के साथ नायक का इश्क फरमाना हो या फिर नायक के खतरनाक स्टंट| इन सभी का अनोखा मेल दिखाती है ये ‘भारतीय फ़िल्में|’ भारत में फिल्म के शुरूआती दौर में महिलाओं के अभिनय को बेहद सीमित दायरे में रखकर फिल्माया जाता था| पर समय के साथ होते बदलाव में धीरे-धीरे नायिकाओं ने अपने बेजोड़ अभिनय से फिल्म के आधे पर्दे पर अपना राज जमाया| नायिकाएं बदलाव के इस दौर में खतरनाक स्टंट के चलन से भी दूर नहीं रही|
भारतीय सिनेमा में इस नए चलन की नींव साल 1930 में आस्ट्रेलिया मूल की भारतीय मैरी एन इवांस ने रखी| आगे चलकर इन्हें फीयरलेस नादिया के नाम से जाना जाने लगा| यह थी भारत की पहली महिला स्टंटवीमेन|
ब्रिटिश सेना के स्वयंसेवक स्कॉट्समैन हर्ब्रेट इवांस और मार्गरेट के घर 8 जनवरी 1908 में एक नन्हीं परी का जन्म हुआ| जिसका नाम उन्होंने मैरी एन इवांस रखा| भारत आने से पहले वे आस्ट्रेलिया में रहते थे| पांच साल की उम्र में साल 1913 में मैरी अपने पिता के साथ पहली बार बंबई आई थी| साल 1915 में जर्मनी के प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उसके पिता की आकास्मिक मृत्यु हो गयी और उन्हें पेशावर में जाकर शरण लेनी पड़ी| पेशावर में रहने के दौरान मैरी ने घुड़सवारी, शिकार, मछली पकड़ने और शूटिंग करना सीखा| साल 1928 में वह फिर अपनी माँ के साथ भारत आयीं और उन्होंने मैडम एस्ट्रोवा से बैले डांस सीखा|
एक अर्मेनियाई ज्योतिषी ने मैरी के सफल भविष्य की बात कही थी| साथ ही उन्होंने बताया था कि अगर वह अंग्रेजी के अक्षर ‘एन’ से कोई भी नाम रखती है तो उसे सफलता ज़रूर मिलेगी| इसके बाद मैरी ने अपना नाम ‘नादिया’ रखा|

साल 1930 में नादिया ने ज़ोरको सर्कस से अपने करियर की शुरुआत की और भारत के अलग-अलग शहरों का भ्रमण किया| विदेशी गोरी रंगत, सुनहरे बाल और नीली आँखों वाली नादिया को भारतीय सिनेमा में लाने से पहले निर्देशक जमशेद की यह चिंता लगातार बनी रही कि कहीं ऐसा न हो भारत की जनता इस विदेशी व्यक्तित्व वाली नायिका को पसंद न करें| पर भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रस्तुतिकरण और दर्शकों के मन में नायिकाओं की बनी एक तस्वीर को बदलने के लिए खतरनाक स्टंट करने वाली नादिया उन्हें बिल्कुल सटीक नायिका लगी| नतीजतन उन्होंने फिल्म जे.बी.एच में नादिया को नायिका के तौर पर चुना| यह नादिया की सबसे पहली फिल्म थी| इस फिल्म का निर्देशन जमशेद वादिया ने किया| इसके बाद उन्होंने ‘देश दीपक’, ‘नूर-ए-यमन’ और खिलाड़ी जैसी सफल फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय और खतरनाक स्टंट से अलग पहचान बनाई| ‘हंटरवाली’ नादिया की सबसे सफल फिल्म रही| उन्होंने पचास से भी अधिक फिल्मों में काम किया| 1960 के दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया से शादी कर ली और फिल्मों से सन्यास ले लिया|

अगले दिन मैंने नेहा को उसकी डायरी सौंपते हुए कहा वाकई नादिया हम सभी के लिए एक मिशाल है| वह भारतीय सिनेमा के दिग्गजों में से एक हैं| यह बहुत ही दुःख की बात है कि भारतीय फिल्मों में इस क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली शख्शियत इस चमकदार दुनिया के अंधेरे में गुम हो चुकी है| पर मुझे इस बात की ख़ुशी है कि तुमने उन्हें न सिर्फ अपना बनाया बल्कि उनकी यादों को भी संजो कर रखा|

स्वाती सिंह 

















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