शून्य हूँ मैं
अपने एक जगह मात्र से ,अंत को अनंत बना सकती हूँ....
अपने अस्तित्व ही से दुनिया को ठुकरा सकती हूँ......
यू तो मेरा मॊल नहीं पर मुझ बिन तू अनमोल नहीं .......
दुनिया का आगाज मुझसे ,दुनिया का अंत भी मै हूँ......
ज़र्रे सी है पहचान मेरी ......
जिसपर तेरी दुनिया बनती है .......
मुझ एक शून्य से है दुनिया ......
फिर भी मै एक शून्य भली हूँ...
स्वाती सिंह
स्वाती सिंह
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