गुरुवार, 28 अगस्त 2014

सिमोन द बोउवार की बनाई हुई स्त्री

20 अगस्त,2008 में 'ब्रेकथ्रू' ने भारतीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,यूनीफेम व द यू एन ट्रस्ट फण्ड के सहयोग से घरेलू-हिंसा को रोकने के लिए 'बेल बजाओ अभियान' लांच किया। जिसकी संस्थापक मल्लिका दत्त थी। इस अभियान का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया। जिससे लोगों में जागरूकता फैले और वो घरेलू हिंसा के खिलाफ़ आवाज़ उठा सके। बेल बजाओ अभियान में,हिंसा सहने वाली महिला से ज्यादा हिंसा देखने वाले यानी की आसपास के लोगों को इसके खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने पर ज़ोर दिया गया था।  

       


      जमीनी हक़ीकत की अगर बात करें,तो ऐसा देखने को मिलता है कि पड़ोसी घरेलू  हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे है।जो लोगों की जागरूकता के बढ़ते स्तर का शुभ संकेत देता है। लेकिन वहीँ दूसरी ओर,जब हिंसा की शिकार महिला ही जब शेरनी बन कर आपसे पूछ बैठे कि-'ये हमारा निजी मामला है।आप कौन होते है बोलने वाले? या फिर वो मेरे पति है जो चाहे करे आपको इसे क्या?' तो इसके बाद मजबूरन हमें वापस होना पड़ता है। जिससे हिंसा के स्तर में बढ़ोतरी तो तय होती है लेकिन बेल बजा कर किसी पड़ोसी की मदद करने के आसार कम होते जाते है। 
         
 ऐसा मुझे तब महसूस हुआ,जब इसी तरह की कुछ घटनाएँ मेरे साथ भी हुई। बात सर्दियों की है,कड़ाके की ठंड थी,सुबह के पांच बज रहे थे।तभी किसी महिला की जोर-जोर से चीखने की आवाज आई। घर से बाहर निकल कर देखा तो कोहरे की धुंध में कुछ दिखाई नहीं दिया। कोहरा छटने पर जब पड़ोसियों से पूछा कि किसकी आवाज थी तो उनलोगों ने बताया कि सामने रहने वाला एक मजदूर अपनी पत्नी को बुरी तरह पीट रहा था। ये सुनने के बाद जब उस महिला से मिलने गई तो उसके शरीर में चोट के गहरे निशान थे और पति के पीटने की वजह जब उससे पूछी तो मुस्कुराकर बोली,'आज खाना बनाने में देर हो गई थी इसलिए उन्होंने ने मारा। नहीं तो वैसे वो मुझे बहुत मानते है"।

दूसरी घटना,मेरे घर में काम करने वाली की है। वो रोज आकर घंटों अपने शराबी पति से बेरहमी मार खाने के किस्से बड़े मज़े से सुनाती थी। साथ में,ये कहना कभी नहीं भूलती कि वो हमें बहुत मानते है और मेरे लिए दवा भी लाते है। लेकिन दुःख सिर्फ इस बात का है कि दस में पढ़ने वाला उनके बेटे को जुए और नशे की लत लग चुकी है और उनके मना करने पर कहता है कि पहले पापा की दारू छुडवाओ फिर मै इस लत तो छोड दूंगा।

तीसरी,मेरे घर के पास ब्यूटी पार्लर चलाने वाली महिला की है। जिनकी शादी को 18 साल हो चुके है और उनके तीन बच्चे है,एक बेटी और दो बेटे। पिछले सात सालों से वो अपने पति से दूर रह रही है जिसकी वजह है पति के शराब और जुए की लत। जब उनका एक भी गहना नहीं बचा जिससे पति जुआ खेल सके तो उसने पत्नी को घर से निकाल दिया। मजबूरन पत्नी को अपने तीन बच्चों के साथ मायके में शरण लेनी पड़ी और आज वो एक छोटे से पार्लर से अपना और बच्चों का पेट पाल रहीं है। पति अब बीच-बीच में आकर उन्हें जान से मारने और बच्चों को उठा ले जाने की धमकी देता है। उन्होंने ये बात एक दिन मुझे बताई और बोली कि मुझे ठीक तरीके से जानकारी नहीं की किससे इसकी शिकायत की जा सकती और कौन मेरी मदद करेगा? इसके बाद,हमने इसकी चर्चा कुछ लोगों से की जो महिला-अधिकारों के लिए काम करते है और वे लोग राज़ी भी हो गये उनकी मदद करने को।लेकिन जब ये बात उनको बताई तो वो बोली की उनके भाई ने मना कर दिया।

इन घटनाओं को देखकर जहन में यह ख्याल आता है  कि  वास्तव में सिमोन की बनाई हुई स्त्री का विकास लवलीन द्वारा बताई काटी-छाटी गई,कोमल तन्तुओं वाली परजीवी लता के समान होता है या यूँ कहें कि ऐसा विकास वे पसंद करने लगी है। फिर इनसब के बाद सिर्फ पितृसत्ता पर सारे दोष मढ़ना उचित नहीं। माना अचानक किसी कि प्रकृति में परिवर्तन सम्भव नहीं लेकिन आँख मूद कर वर्तमान देखना और उजले भविष्य की मनोकामना करना भी कितना तर्कसंगत है?


स्वाती सिंह


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